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________________ (तत्थ ) ते साधुपणाने विषे ( भयमेखा ) भय उत्पन्न करवावडे करीने भयंकर काने ( भीमा ) अति रौद्र एवा (दिव्या) देवसंबंधी, (मगुस्सा ) मनुष्यंसंबंधी ( अदुवा ) अथवा ( तिरिन्छा ) तिर्यचसंबंधी उपसर्गों (उइंति ) उदयमां आवे छे -- उत्पन्न थाय छे. (१६. तथा - परी सहा दुव्विसहा मोगे, सीदति जानेकाद । से तत्थं पत्ते ने हिज भिक्खूं, संगामतीसे व नागराया ॥ १७ ॥ अर्थ -- ( दुब्बिसह ) दुःखे करीने सहने यह शंके ठेवा ( अगे ) अनेक ( परीसंहां ) परीषहो पण उत्पन्न थाय थे, के ( जत्था ) जे उपसर्गो अने परीषहो उत्पन्न थये सते ( बैहुकायरा ) घणा कॉयर ( नरा ) मनुष्यो ( सीदति ) सीदाय एटले चारित्र पाळवामी शिथिल थाय छे. ( से ) हवे (तत्थ ) ते उपसर्ग अने परीषहोने विषे ( पत्ते ) प्राप्त धयेलो अथवा उपसर्गो ने परीपही प्राप्त थये सत्ते ( भिक्खू ) साधु थयेलों तु ( संगामसी से ) संग्रमिना मोखरामा प्राप्त थयेला ( नागरीया इव ) हाथीनी जेम ( न वहिन ) व्यथा पामोश नहीं-संवधी चलायमान यश नहीं. १७. सीतोसिणा समसा य फांसा, आयको विविंहा फुंसंति देहः । 'अक्कुक्कुओ तर्थऽहियांसज्जा, रेयाइं खेवेज्जे पुरेकडाई ॥ १८ ॥
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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