________________
-
ध्यानविभक्ति २०, मरणविभक्ति २१, आत्मविशुद्धि २२, संलेखनाश्रुत २३, वीतरागश्रुत २४, विहारकल्प २५, चरणविधि | २६, भातुरप्रत्याख्यान २७, भने सातत्यारूपात २८. का गीत सध्यो (सूत्रो) उत्कालिक कहेवाय छे. तथा उत्तराध्ययन १, दशाश्रुतस्कंध २, बृहत्कल्प ३, व्यवहार ४, ऋषिभाषित ५, निशीथ ६, महानिशीथ ७, जंबद्वीपप्रज्ञप्ति ८, सूरप्रज्ञप्ति २, चंद्रप्राप्ति १०, द्वीपसागर प्राप्ति ११, क्षुद्रका विमानप्रविभक्ति १२, महती विमानप्रविभरिक १३, अंगचूलिका १४, वर्गचूलिका १५, विवाहचूलिका १६, अरुणोपपात १७, वरुणोपपात १८, गरुडोपपात १६, धरणोपपात २०, वैश्रमणोपपात २१, वेलंधरोपपात २२, देवेंद्रोपपात २३, उत्थानश्रुत २४, समुत्थानश्रुत २५, नागपरिज्ञावनिका २६, * निरयावलिका कल्पिका २७, कल्पावतंसिका २८ पुष्पिका २९, पुष्पचूलिका ३०, वृष्णिदशा ३२, आशीविप भावना ३२, दृष्टिविष भावना ३३, चारण भावना ३४, महास्वप्न भावना ३५, श्रने तैजस निसर्ग ३६. श्रा विगेरे कालिकात कहेवाय छे. तेमां आ उत्तराध्ययन सूत्र कातिकमा प्रथम ज गययाव्युवे. श्रा सूत्रमा छत्रीश श्रध्ययनो छे. ते अर्थथी श्री वर्द्धमान स्वामीए पोताना अवसान समये सोळ पहोरनी देशना पापी ते वखते प्ररूप्या छे. ते देशनामां प्रभुए पंचावन अध्ययन पुण्यफळ विपाकमां अने पंचावन अध्ययन पापफळ विपाकनां कयां छे. त्यारपडी पूलथा विना उत्तराध्ययनना छत्रीश अध्ययन प्रकाश्यां छे तेथी ते पृष्ठ व्याकरण कहेवाय छे. छेवट मरदेवा मातार्नु प्रधान नामर्नु अध्ययन प्ररूपतां अंतर्मुहन्तनुं शैलेशीकरण करी प्रभु मोक्षपद पाम्या छे.
भा उपरथी स्पष्ट जागी शकाय हे के भगवानना मुहाथीभंत समये या सूत्रनो अर्थ प्ररूपेलो होवाथी तेमां अनेक धर्म विषयोनां तत्व * मा पीना पांच नाम निरयावलिकाना ज विभागरूप के.