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________________ महापभावस्स महाजसस्स, मिश्रापुस्तस्स निसम्म भासिय। तवप्पहाणं चरि च उत्तम, गप्पहाणं च तिलोअंविस्सुअं ॥ ९८ ॥ अर्थ---(महापभावस्स) मोटा प्रभावबाळा, तथा (महाजसस्सः मोटा यशवाळा (मिश्रापुत्तम्स) मृगापुत्रना (भासिभ) |.. संसारनु असारपणुं विगेरे जणावनारा वचनने (निसम्म) सांभळीने (च) तथा (तवप्पहाणं) तप के प्रधान-मुख्य जेमा एवं तथा (उत्तम उत्तम एवं, तथा (गइपहाणं च) मोक्षरूप गतिए करीने प्रधान एवं. तथा ( तिलोअविस्सुअं) प्रण जगतमा । | प्रसिद्ध एवं (चरिअं) ते मृगापुत्रनुं चरित्र सांभळीने-६८. विआणिा दुक्खविवड्डणं धणं, ममत्तबंधं च महब्भयावहं । सुहावह धम्मधुरं अणुत्तरं, धारेह निवाणगुणावहं महं ॥ ९९ ॥ त्ति बेमि ॥ __ अर्थ--तथा (धणं) धन (दुक्खविधगुण) दुःखने वधारनार छे, (च) तथा (ममत्तघ) ममत्वनुं बंधन छ भने (महन्भयावह) : महा भयने वहन करनार छ एम (विआणिमा) जाणीने (सुहावई) सुखने पापनार, (अणुत्तर) सर्वोत्कृष्ट, (निम्बाणगुणा| वह) मोक्ष प्राप्त करायनारा गुण जे अनंत ज्ञान, दर्शन, चारित्र अने वीर्य तेने धारण करनार थामो तथा (मई) मोटी एत्री : (धम्मधुर) धर्मधुराने (धारेह) धारण करो. (सि बेमि) ए प्रमाणे सुधर्मास्वामी जंबूस्वामीने कहेता हवा. ६६. इति एकोनविंशतितममध्ययनम् ॥ १६ ॥
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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