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________________ मा प्रमाणे दृष्टांत कहीने इवे वे माथावडे उपसंहार करे - न एवं समुट्टि भिस्खू, ऐवमेव अणेगगो। मिगचारिअंचरित्ता णं, उड्डे पक्वमई दिसि ॥ ८३ ॥ ___ अर्थ-(एवं) ए ज प्रमाणे (समुट्टिते) चारित्रनी क्रिया पाळवामां उद्यमवंत थयेलो एटले मृगनी जेम रोगनी उत्पति सते पण चिकित्सा नहीं करनार तथा (एयमेव) ए ज प्रमाणे एटले भृगनी जेम (अणेगगो) अनेक ठेकाणे अनियमित रीते रहेनार (मिवस्) साधु (मिगचारि) मृगना जेबी चर्यान (परिचा णं) आचरण करीने-पाळीने सर्व कर्मनो नाश करी TI (उचं दिसिं) ऊर्ध्व दिशा प्रत्ये एटले मोक्ष प्रत्ये (पक्काई) जाय छे. ८३. मृगचर्याने ज स्पष्ट करे छ. जहा मिए एग अणेगचारी, अणेगवासे धुंबगोअरे अ। एवं मुणी गोअरिअं 'पविटे, 'नी हीलए 'नो वि अविसइज्जा ॥ ८४ ॥ अर्थ-(जहा मिए)जेम मृग (एग) एकलो-सहाय रहित, तथा (अणेगचारी) अनियत विहार करनार, तथा (अणे-|| गवासे) अनेक स्थाने निवास करनार (म) तथा (धुवगोअरे) निश्चित गोचरवाळो एटले निरंतर गोचरमा ज मळेली वस्तुनो पाहार करनार होय छे, (एवं) एजीते (मुखी) मुनि पण वेवा ज विशेषणवालो (गोअरिअं) गोचरीने विषे (पविद्वे) गयो || थको (नो हीलए) कोइनी हीलना न करे एटले कदम्बादिक मळे तो ते भमनी के तेना आपनारनी निंदा न करे (विम)
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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