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को वो से ओसहं देई ?, को वा से पुच्छई सुहं ?।'को वो से तपाणं च, आहरित्तू पंगामए १८०
अर्थ (वा) अथवा (को ) कोण (से) वेने (मोसई ) औषध (देह ) आपे छ ? (वा) अथवा (को) कोग (से) तेने ( सुहं ) सुख साता ( एमई) पूले ले १० वा) अशमा (को) कोण (से) तेन ( मत्चपाच) मात पाथी
माहार (बाहरित ) लावीने (पणामए ) आपे छे ? कोइ ज नहीं. ८०. | त्यारे तेनो निर्वाह शी रीते थतो हशे । ते उपर कहे छे.| जया य से सुही होइ, तयों गच्छद गोअरं । भैतपाणस्स अट्रोए, वल्लराणि संराणि अ ॥१॥ __ अर्थ-(जया य)मने ज्यारे (से) ते मृग (सुही) सुखी एटले रोग रहित (होइ) होय छे-थाय छे, (तया) त्यारे
चरवाने स्थाने (गच्छद) जाय छे, थने त्यां (भत्तपाणस्स) भोजन पाणीने (भट्ठाए) अर्थे ( बलराणि ; लीला घासना स्थानोने ( सराणि अ ) तथा सरोवरोने शोधे छे. ८१. * खाइत्ता पाणि पाउं, वैल्लरेहि सरहि अ। मिगचारिअंचरित्ता गं, गच्छई मिअचारिओं ॥ २॥
अर्थ-हे मातापिता ! ते व्याधि रहित मृग (मिगचारिश्रं ) मृगनी चर्यावडे एटले मृगने खावा पीवानी विधि (चरित्ता शं) चरीने ( बल्लरेहिं ) लीला घासना प्रदेशथी ( सरेहि अ ) तथा सरोवरथी (खाइत्ता) खाइने अने ( पाणिभं पाउं) पाणी पीने (मिचारियं) मृगने विश्रांति लेवानी भूमि प्रत्ये ( गच्छई) जाय छ, ८२.