SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीते एक से ज प्रशंसा थे. अवसरे उज्जयिनी नगरीमा श्रीवर्मा नामे राजा राज्य करतो हतो. देने वितंडाबाद करवामां चतुर भने नास्तिक एवो नमुचि नामनो प्रधान इतो. एकदा ते नगरीनी बहार उद्यानमा मुनिसुव्रत स्वामीना शिष्य सुव्रत नामना सूरिराज पधार्या तेमने नमवा माटे जता लोकोंने जोइ प्रासाद उपर बेठेला राजाए ' या लोको क्या जाय के ? एम नचिने पूछयुं त्यारे नमुचिए जबात्र आप्यो के" हे देव ! आजे नगरीनी बहार उद्यानमा कोइ साधु आवेला के, नवा माटे तेना भक्तजनो जाय छे." ते सांभळी राजाए कयुं के " त्यारे आपये पण त्यां जहए. " त्यारे नमुचि बोल्यो के " जो जनुं होष तो चालो जइए. परतुं त्यां आपे तो मध्यस्थ ज रहेनुं हुं ज ते सर्व पाखंडीभोने वादमां जीती " त्यारे राजा ' बहु सारुं ' एम कही मंत्री सहित उद्यानमा गया. या नमुचिए सुनिने कधुं के " जो तमे धर्मने जाणता हो तो कहो. " ते सांभळी ' मा कोइ नीच माणुस थे. ' एम जाणी आचार्य महाराज मौन रह्या, त्यारे ते प्रथम मंत्री जिनशासननी निंदा करतो आचार्यने उद्देशीने बोल्यो के-" आ तो बळदीया जेवो थे, तेने धर्मनी शी खबर पडे ?" ते सांभळी गुरु चोन्या के - " जो तारा मुखमां खरज भावती होय तो अमे कांहक बोलीए. " था प्रमाणे गुरु बोल्या त्यारे तेमना एक क्षुल्लक साधुए गुरुने कथं के" हे पूज्य ! या घृष्टनी साधे भापने जाते बोलधुं योग्य नथी, सेन हुं ज जीतीश. ते पोतानो जे पच बोलवो होय ते भले बोले. " ते सांभळी नमुचि क्रोधथी बोल्यो के-“ जेभो वेदधर्मथी बरा होय पाने शौचधर्मथी रहित होष तेमने देशम वसबा देवा ज योग्य नथी. ए मारो पक्ष के. " ते सांभळी क्षुल्लक साधुए क के लड़श.
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy