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________________ च न · 11 **--* डली नामनो पुत्र चुं. एकदा हुं श्राकाश मार्गे थहने पुंडरीकिणी नगरीमा गयो. त्यां श्रमितयशा नामना तीर्थकरने में भक्तिथी वंदना करी. पछी में प्रभुने पूछ के - " हुं विद्याधर शा पुण्यथी थयो ? " त्यारे तीर्थकर महाराज अमृत जेवी मधुर वाणीथी बोल्या के. पुष्करवरीपना पश्चिम भागमां शीतोदा नदीने दक्षिण कांठे सलिलावती नामना विजयमां वीतशोका नामनी श्रेष्ठ नगरी . त्यां कामदेवनी जेधा रूपवाळो रत्नध्वज नामे चक्रवर्ती हतो. तेने हेममालिनी अने कनकश्री नामनी प्रियाओ हवी. तेमां पहेलीए पद्मा नामनी पुश्री प्रसवी अने बीजीए कनकलता तथा पद्मलता नामनी ने पुत्रीने जन्म श्रप्यो. लक्ष्मीनी जेवा अद्वितीय रूपवाळी पद्माए युवावस्थामां पण अजितसेना नामनी आर्या पासे दीक्षा ग्रहण करी. ते पद्मा साध्वी उपवास विगेरे दुष्कर तप करवा लागी तेणीए एकदा कोइ वैश्याने माटे युद्ध करता ये राजपुत्राने जोह विचार कर्मो के — "अहो ! या वेश्यानुं सौभाग्य श्रद्भूत छे, के जेने माटे श्रावा कामदेव जेवा रूपवाळा वे राजकुमारो युद्ध करे छे. तो जो था मारा तपनुं कां फळ होय तो तेना प्रभावथी आवता जन्ममां हूं पण यावा ज सौभाग्यवाळी थाउं " आ प्रमाणे ते पद्मा सावए नियाणुं कर्यु पछी आयुष्यने छेडे ते नियायानी आलोचना कर्या विना अनशन करी काळधर्म पामी सौधर्म देवलोकमां देवी थड़. "भव तेनी जे कनकश्री नामनी विमाता हती, तेथे त्यांथी मरी संसारमा केटलाक भव का जन्मथी पूर्वना जन्ममां कांडक दानपुण्य क. तेना प्रभावथी तुं आ भत्रमा मणिकुंडली नामनो विद्याधर थयो छ. हवे ते कनकश्रीनी वे पुत्रओ जे कनकलता ने पद्मलता हती ते संसारमा केटलाक भयो भभी पूर्वभवमां विविध प्रकारनुं शुभ SA
SR No.090459
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunvarji Anandji Shah
PublisherKunvarji Anandji Shah Bhavnagar
Publication Year
Total Pages809
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_uttaradhyayan
File Size18 MB
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