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उपदेश चित्तारिन किमाइ मणि कसाय पञ्चरवरून जणु ते निसाय विहिनि दिपवक्रमेण खमदमउवसमप्रतिनिबएण! सष्ठतिका
॥ १३ ॥ चाइ सुदेसए रससुसाट परिपीय सबजण गयविसाज । जिएगुण श्रुणंतु नियगदपत्त पहजत्तिकरवियसुचित्त १२२३॥
॥ १४॥ अहम सुख तवपारणम्मि आपुधिय पहु जिस्काखणम्मि । पोलासपुरिहिं गोयममुणिंद आवs मुहचंगिमविजियचंद ॥ १५ ॥ श्रह रायमग्गि अश्मुत्तनाम पुरकुमर समन्निय मणजिराम । खिशंतन अव कंयुगेण नाणाविदकीय
लारसन्नरण ॥ १६॥ नहु थक्का इक्का पुरकुमार रे धाबहु लाबद्ध कांइवार । इय जपिरेण इरिसेण तेण दिन गोयमरिमि *तरकणए ॥ १७ ॥ पयपतमि लग्ग सो मुणिवरस्स बहुपुन्नजोगि समुवागयस्स । को रायइंस गई सिरकवेश को चबुदंमा मरिम ज्वे ॥ १०॥ कुलवंत होइ नाणु विषयवंत विणसिस्किय अरिकय सो महंत | अंगुलीयलग्ग श्रमुत्त वत्त
श्य करइ हर मुणिवरहचित्त ॥ १५॥ तुम्हे पहु निवस? कत्थ वामि पुरनयरदेसि श्रारामिगामि । पुरमनिलमहु कुण * कारणेण तो अस्किय गोयममुणिवरेण ॥ २० ॥घात-जो चिरकाकारणि उन्हपारणि हल जमामि पुरि कुमरवर ।।
सिरिवीरहपासिहि नणु वएवासिहि वासमति अन्न पचर ॥१॥ वास-श्य गुरुवयण सुषेवि कुमारो सिरिधश्मुत्त ४ कहा जगसारो । सामीय मनपरिहि पधारउ सुकयवनि वणराइ वधारल ॥ २ ॥ थावंतल नियनंदण निरखीय सुगुरुसत्यि जगणी मणि हरखिय । पुग्नवंत श्रप्पणपलं मन्ना कुमरतणा गुण वयपिहिं वन्न ।। १३ ।। तरकणि संमुह श्रा
सा-IAC३३॥ विय अंवा गुरुर्दसणि पुलश्य अविखंवा । पयजोहारिय मोयग श्रप्पश्चप्पा पुन्नवतधुरि थप्पड़ ॥॥ चित्तवित्तसुद्धीय है। मुणेविण पमिगाह मुशिपत्तधरे विण । तो अश्मुत्तकुमर मणि तुळ मन मणोरह फखियगरिष्ठ ॥ १५ ॥ महरवाणि
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