________________
तो साहिय महिवइलो तिजए बिंदु कत्थ नए ररका । जइ एवं ता किं नियपुत्तं सोएसि श्रहह मुद्दा ॥ ५८ ॥ सदेसिं सत्ताणं मरणं साधारणं नणु इमं जो । एए समं न बलं नेव बलं चलए किं वि ॥ ५५ ॥ एगे उप्पती मरंति छाने विई जवस्सेसा । वेस व विविहरूवा वि नमइ सर्व पि तियखोयं ॥ ६० ॥ माहण मा इष अप्पं मुद्दा कई रुयसि कुसु अप्पदियं । तुमवि कहं कब लिङसि न हु मुकायम सी देण ॥ ६१ ॥ तो वारुवेण वुइयं श्रमवि जाखामि एयमविगप्पं । परमंगरुट्स्स दियं सहि पुरकं न सक्केमि ॥ ६२ ॥ जार्ज कुलरक मे विणा सुएणक रजासत्रापहो । दीपाखाइसु व बखिdsदं देव देवेा ॥ ६३ ॥ मइ माणुसस्स जिरकं देसु सु जीवए जानाह । चक्की जंप तं पड़ जो विष्प सुणेहि मह वत्तं ॥ ६४ ॥ न हु विहिणा सह पोरिसमस रिसमुझसा कस्स वि जयम्मि । सक्कस्स चक्कियो वा खंदस्स तहा मुकुंदस्स || ६ || सत्थाई सुतिरकाई त्रि न मंततताई तह य जंताई । एवम्मि फुरंति अहो श्रदिदिनव्यहारम्मि ॥ ६६ ॥ सोगं हयपरखोगं ता उञ्जिय धरसु धीरिमं चित्ते । पबकाए को निश्वजाए जनसु सको ॥ ६७ ॥ सासु परखोयहियं गए गए वा विाचन वा । को दरको परितप्पड़ विरई वा सवत्थुम्मि ॥ ६० ॥ विप्पेणुत्तं नरवर सच्चमिणं । किं करण सोए । रुइए अणुमएण व जत्थ न परिसद्दई कोऽवि ॥ ६५ ॥ एवं जड़ ता तुममवि मा राय करेखा सुप्पमायपरो । सोगमसंजबिक संजाए विहिवसेष पदो ॥ ७० ॥ तो संतो राया पुञ्छ किं सोगकारण मित्थि । विष्पेतं तुह सहिसदस्सपुत्ता मिई पत्ता ॥ ३१ ॥ सधेऽवि इक्कवारं पारं कुसु मा विसायरस । इय वतपहारोवममाइन्निय कनककुयगिरं ॥ ७२ ॥ सहसा विसन्नचितो पमि राया अतुलमुत्राप | पीढाच महीपीढे सेखार्ज गंगसेषु व ॥ ७३ ॥
281