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उपदेश
॥ १२८ ॥
अषा संपेसिया इहायाया । भुद्दारयणस्स कए तस्सापुवस्स एगस्स ॥ १५६ ॥ जइ अस्मि त दंसेहि जेलमध्ये मि मोलमहियं । तो पचमेणं मुलियं एसो खलु दूरदेसत्यो ॥ १५७ ॥ दिने मुद्दारयणे एय्स्स न कोवि सोमवि सह । तो पलनं दंसियमिमस्स हद्वंतरे नेचं ॥ १५० ॥ तो तेरा पुवसंकेश्या य पुरिसा तहिं समाणीया । दढयरमेसो वयो तेहिं | तेणुव खण मित्ता ॥ १५५ ॥ रायकुखम्मि य नीचे नवलस्कियमपणो कराहरणं । रन्ना विमंबिकणं दशावि निवसनिय - मिलो ॥ १६० ॥ बडुरोगात ( सासू ) सुशियजावं पचये। ननिय जई नवं नवं मुस्कमणुद विजं
॥ १६१ ॥ कम्मपरिणामरक्षा श्रदेस संपाइल विजयनयरे । सावयकुलम्मि धणदत्त सिधियो गजते ॥ १६२ ॥ सो सोमदत्तनामो जार्ज सुकुलुप्रवत्तणेणस्स । सम्म सानो संजू अह दरिदत्ते ॥ १६३ ॥ कयमत्ययकुत्थख वाणि कुणइ निललवणाएं । तीरग्गामेसु सया पजूयकाले ननु ते ॥ १६४ ॥ किंचिय धणं समद्रियमिमेण हट्टो डु स ( कि ) यधन्नाएं। तो मंभि य तत्यवि किंचिवि दक्षं समुप्पन्नं ॥ १६५ ॥ तत्तो लावसरे ( रो ) समाग रागकेसरि ( री ) तपुचं । तप्पासम्मितायुबंधिलोजो खपेण तहिं ॥ १६६ ॥ बहुखीए लड्डु जाया सागरनामेण जो इस्काउं । तथसर्ज संपन्ना तस्साधणऋणस्सिला ॥ १६७ ॥ तत्तो अवरावरजू रिसारवाणिकसयाजोगा । जार्ज सदस्सधहिजे तर्ज किलेसे दिगेदिं ॥ १६० ॥ पत्तो सरकवतं तवि कोमीसरे समुप्पन्नो । जह जह बढइ दबं तह तह से सागरी अहि ॥ १६ए ॥ तप्पेरणा एसो निंदइ देवे किमेसिमच्चाए | कस्सवि रूप (व) गमेगं न जो पइछेति कयादि ॥ १७० ॥ किमिमेहिंपि गुरूहिं किमेसिमुषएससवणचे डुसिया । विग्धकरो केवल मिह धणबाणस्सोवएसनरो ॥ १७१ ॥ इय
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सप्ततिका
॥ १२८ ॥