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सप्तम अध्ययन
श्रमणोपासक सकडालपत्र
सत्तमस्स उक्खेवो । पोलासपुरे णाम जयरे, सहसंपवणे उज्जाणे, जियसत्तु राया । सत्य णं पोलामपुर णयरे महालपुत्ते णामं कुंभकारे आजीविओवासए परिषसइ । आजीवियसमयसि लदहे गहिय? पुच्छियढे विणिच्छिपढ़े अभिगयठे अद्विमिंजपेमाणगगरते य "अपमाउसो ! आजीवियसमए अढे अयं परमढे सेसे अणट्टे" ति आजीषियसमएणं अप्पाणं भावमाणे विहरइ ।
अर्थ- सप्तम अध्ययन के प्रारम्भ में भगवान् सुधर्मा स्वामी फरमाते है-"हे जंबू ! उस समय पोलासपुर नामक नगर के बाहर सहस्त्राम्रवन नामक उद्यान था। जितशत्र राजा था । वहाँ गोशालक-मत 'आजीविक' को मानने वाला सकडालपुत्र नामक कुम्हार रहता था। वह आजीविक मत को भलिभांति समझा हुआ था। उसके मन में आजीविक मत को बढ़ श्रद्धा पी। हड्डो और हड्डो को मज्जा तक आजीविक-मत के प्रेम में रंगी हुई थी। वह इसे अर्थ, परमार्य एवं शेष को अनर्थ मानता था।
तस्स णं सालपुत्तरस आजीविओवासगरस एक्का हिरणकोसी णिहाणपउत्ता एक्का बुड्ढि पउत्ता एक्का पवित्थरपउत्ता एक्के का दसगोसास्सिएणं पएणं । तस्स णं सहालपुत्तस्स आजीविओषासगरस अग्गिमित्ता णाम मारिया होत्या। तस्स णं सहालपुत्तस्स आजीविओषासगरस पोलासपुरस्स जयरस्म पहिया पंच कुंभकारावणमघा होत्था । तत्थ णं यहवे पुरिमा दिण्णभइभत्तवेयणा कल्लाकल्लिं यहवे करए य धारए य पिडा य घडए य अद्धघहए य फलसए य अलिंजरए य जंबूलए य उहियाओ य करेंति, अण्णे य से यहवे पुरिसा दिण्णभइ.