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श्रमणोपासक कुण्डकोलिक
व्यतीत हो जाने के बाद पन्द्रहवें वर्ष के किसी दिन कामदेव की भांति ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का मुखिया नियुक्त कर के पोषधशाला में धर्म-विधि की आराधना करने लगे । ग्यारह उपासकप्रतिमाओं का सम्यक् आराधन स्पर्शन एवं परिपालन किया । यावत् सारा वर्णन जान लेना चाहिए। संलेखना कर के समाधिपूर्वक काल कर के प्रथम सौधमं देवलोक के अध्वज नामक विमान में चार पल्योपम की स्थिति वाले देव हुए। यहाँ से महाविवेह क्षेत्र में जन्म ले कर सिद्ध-बुद्ध यावत् सभी दुःखों का अंत करेंगे 1
॥ छठा अध्ययन सम्पूर्ण ॥
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