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खत भंग हुआ प्रायश्चित्त लो
पुरुष ने तेरे पुत्रों को मारा है, यावत् न कोई पुरुष दुःख देने आया है। किसी सिम्याको मेव को छलना के कारण तुमने भयंकर वृश्य देखा है, जिससे तेरा प्रत, नियम तथा पोवध भग्न हुआ है। हे पुत्र | इस दोष-स्थान की आलोचना कर तप-प्रायश्चित्त स्वीकार करो। सब पूज्या मातुश्री के वचनों को चुलनीपिता बावक ने हाथ जोड़ कर विनयपूर्षक स्वीकार किया, तथा लगे हुए दोष का शुद्धिकरण किया ।
विवेषन-एलनीपिता से उसकी माता ने कहा कि तुमने भयंकर स्वरूप देखा है, जिससे तुम भग्नवत हुए हो । स्थूल प्राणातिपात विरमण को तुमने भाव से भंग किया है। भयंकर स्वरूप को क्रोधपूर्वक मारने दौड़े, जिनसे व्रत का भंग हुमा, क्योंकि अपराधी को भी मारना प्रत का विषय नहीं है। इसलिए 'भग्ननियम' क्रोध के उदय से उत्तरगुण का भंग हुआ, एवं 'भग्नपौषध'--प्रव्यापार पौषध ब्रत का भी भंग हुमा, इसलिए उसकी आलोचना करो मोर गुरु के पागे पापों को निवेदन करके उसका प्रायश्चित्त करी, आत्मसाक्षी से उस पाप की निंदा करी, पतिचार रूप मल को साफ कर के व्रत को शुद्ध करो, फिर दोष न लगे, ऐसी सावधानी रखो 1 यथार्थ सपकम प प्रायचित्त लो।
साधु के समान गृहस्थ भी यथायोग्य प्रायश्चित्त का पात्र है। यह बात इस मूत्रपाठ से स्पष्ट हो जाती है। उपरोषस खुलासा श्रीमद् अभयदेव मूरि ने टीका में किया है।
मए णं से चुलणीपिया समणोपासए परमं उखासगपडिम उषसंपज्जित्ता णं विहरह। पढ़मं उथासगपद्धिम अहासुतं जहा आणंदो जाव पक्कारसवि । तएणं से चुलीपिपा समणोवासए तेणं उरालेणं जहा कामदेवो जाद सोहम्मे कप्पे सोहम्म-वधिमगरस महाविमाणस्स उत्तरपुरछिमेणं अरुणप्पमे विमाणे देवताए उववणे चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । महाविदेहे वासे सिजिमहिइ ५ णिक्खेचो ॥ सू. २९॥
अर्थ- (कालान्तर में) बुलनीपिता श्रमणोपासक ने प्रथम उपासक प्रतिमा संगी. कार की, यावत् आनंदजी की भौति ग्यारह ही प्रतिमाओं का घोर-तप सहित मुड आyधन किया यावत कामदेव की भांति (बीस वर्ष की बाधक-पर्याय का पालन किया मासिको संलेखमा से) प्रथम देवलोक के सौधर्मावतंसक महाविमान के उत्तरपूर्व में स्थित
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