________________
d
श्री उपासमादशांग सूत्र-२
कामदेव का आदर्श “कामदेवाइ ? समणे भगवं महावीरे कामदेवं समणोपासयं एवं धपासीसे गूणं कामदेवा! तुम्म पुन्वरत्तावरत्तकालसमयसि एगे देवे अंतिए पाउन्मए । तए णं से देखे एगं महं दिव्यं पिसायसवं विउवा, बिउवित्ता आसुरत्त कहे कुविए चंतिक्किए मिसिमिसीयमाणे पगं महं नीखुप्पल जाव आसिँ गहाय तुमं एवं वयासी-ई भो कामदेवा ! जाव जीषियाओ अवरोविज्जसि,तं तुम तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरसि एवं षण्णगरहिया सिण्णिवि उपसग्गा तहेव पतिउमरियन्वा साप यो परियो, संपूर्ण कामदेवा अढे समठे?" "हंता अत्थिा"
अर्य-श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने कामदेव श्रमणोपासक को संबोधित कर फरमाया—'हे कामदेव ! कल मध्य रात्रि के समय तुम्हारे पास एक देव माया और पिशाच रुप बना कर पावत् मार डालने की धमकी दो। तुमने निर्भीक रहकर तीनों उपसगों को सममाव से सहन किया यावत वह देव लौट गया, इत्यादि वृत्तांत क्या सस्य है ? ' कामदेव ने कहा-"हाँ भगवन् ! सत्य है।"
“अज्जो इ समणे भगवं महावीरे पहवे समणे-णिग्गथे पणिग्गंधीओ घ आमंतेत्ता एवं वयासी- आइ ताव अज्जो समणोपासगा गिहिणो गिहमज्झावसंता दिघमाणुस्सतिरिक्खजोणिए उवसग्गे सम्म सहति आय अहियासंति, मक्का पुण्णाई अनो! समणेहिं णिग्गयेहिं दुषालसंगं गणिपिटगं अहिजमाणेहिं दिव्यमाणुसतिरिक्खजोणिए सम्म सहित्तए आव अहियासित्तए, तओ ते यहवे समणा णिग्गंधा य णिग्गंपीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स तहत्ति एयमदं विणए णं पहिसुगंति । तए थे कामदेवे समणोवासए हह जाय समणं भगवं महावीरं पसिणाइं पुच्छई अट्ठमादिया, समणं भगवं महावीरं तिक्खुतो वह पामंसह बंदिता णमंसित्ता जामेव दिसि पाउपभूए तमेव दिसि परिगए । तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णया कपाइ पाओ पडिणिखमइ, परिणिक्खमित्ता पहिया अणवयविहारं विहराइ ॥ सू. २५ ॥