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का दिया । वे उसे देव नहीं, क्रूर मानव ही समझ रहे थे।
गृहस्थ प्रत्याख्यानावरण कपाय के उदय से युक्त होता है। उदयमाव की न्यूनाधिकता तो मनायों में होती ही है । किमी का पुत्र पर अधिक स्नेह होता है, तो किसी का भाता अपवा पली पर । मुरादेवजी ने सोचा होगा कि भयंकर रोगों के उत्पन्न होने में शरीर की को दुर्दशा होगी और आत्मा में अशांति उत्पन्न हो कर दुर्ध्यान होगा, बह साधना में पतित कर देगा। इस आशंका के मन में उत्पन्न होते ही वे विचलित हो गए, चूलशतकजी पुत्र हत्या से नहीं, परन्तु धन-विनाश से डिगे । उन्हें धनविनाश से प्रतिष्ठा का विनाश लगा होगा और दारिट्रय जन्य दुःखों ने डराया होगा ।
श्री आनन्दजी तो घर छोड़ भार अन्य स्थान की पौषधशाला में चले गये थे, कदाचित् कामदेवजी भी अन्यस्थ पौषधशाला में गये हों, शेष चुलगीपिताजी आदि अपने भवन के किसी भाग में नियन्त की हुई पोषधणाला में ही आराधना करते रहे । यह बात उपमर्ग के ममय उनकी लमकार माता एवं पत्नी के सुनने और उनके ममीप आ कर अम मिटाने और शुद्धिकरण करवाने की घटना में ज्ञात होगी है।
दम ही क्यों
भगवान महावीर प्रभ के लाखों श्रमणोपामकों में बंबल दम ही एग उपासक हो और अन्य ग श्रणी के नही हो. एमी बात नहीं है । अंतगडसूत्र के मुदगंन श्रमणापामगर, भगवती वणित तुंगिका के. श्रावक एवं शंख-पुष्पानि वि कई कं, जिनमें प्रपना प्रान्म-प्रदंदा में धर्म का रंग अन्यन गाकगाइनम चढ़ा हुआ था । इम पग को छुड़ाने की पविन किमी देव दानव में भी नहीं थी।
यह सूत्र 'दशाग' डोने के कारण दा अझायन · दम उपागकों के ग्नि-तन ही मीमित है। यं दम ही थमणोपासना बीम वर्ष की श्रावकपर्याय, प्रतिमा आगधफ, अवधिजान प्राप्त प्रथम म्बर्ग में उत्पाद, चार पल्पोपम की स्थिति और बाद के मनुष्यभव में महाविदह क्षेत्र में मकिन पाने वाले दए । इस प्रकार की साम्यता वाले दस धमणोगामकों के चरित्र को ही इम सूत्र में म्यान देना था, अतएन आगमकार ने दस चरित्र ले कर शेप छोड़ दिये ।
देवेन्द्र और जिनेन्द्र से प्रशंसित
व आवां श्रणोपासक देवेन्द्र और जिनन्द्र में प्रसाशिम । कामदेव श्रावजी की अमंदता आदि की प्रशंमा सौधमं स्वर्ग के अधिपति, असंख्य देव-देवियों के म्वामी शकेन्द्र ने की पी । एक अविश्वासी देव उन्हें बलायमान करने आया । उसने पिशाच, गजराज और नागराज का रूप बना कर कामदेवजी को घोगनिधार उपसर्ग दिये किन्तु वह उन्हें धर्म से व्युत नहीं कर सका । यह निष्फल हुआ, पराजित