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________________ भी उपासकदशांग सूच-२ wwwwwwwwwww गंभब्वेणं णिग्गंथाओ पाषयणाओ पालित्तए वा खोभितए पारिपरिणामित्तए था। अर्थ--हे कामदेव अमगोपासक ! आप धन्य हैं, हे देवान प्रिय ! आप पुण्यशाली है, कृतार्थ हैं, आपके शारीरिक लक्षण शम है, मनुरूप जन्म और जीवन प्राप्त कर आपने सफल किया है, आप महान् पुण्यात्मा हैं। आपको निपंथ-प्रवधान में पूर्ण दृढ़ता, निष्ठा, श्रद्धा एवं चि मिली, प्राप्त हुई, मली प्रकार स्थित हुई है। हे देवानप्रिय ! एकबार सौधर्म देवलोक के अधिपति शन्द्र महाराज सौधर्मावतं. सक मिसात की सार्माममा में पौरामी नार सामानिक वेवों, तेतीस त्रायत्रिशक देवों, चार लोकपालों, आठ अप्रमाहिषियों आदि तथा अन्य देवी-देवताओं के मध्य अपने सिंहासन पर विराज रहे थे। उन सब के समक्ष शफन्द्र ने यह प्ररूपणा की कि 'हे देवों 1 अंबद्वीप के भरतक्षेत्र में चम्पा नामक मगरी है। वहां कामदेव धमनोपासक पौषधशाला में रहा हुआ, घमण भगवान महावीर स्वामी द्वारा फरमाई गई धर्मप्रज्ञप्ति का यथावत् पालन करता हुआ धर्मध्यान कर रहा है। किसी भी देव, दानव, या, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महोरग और गंधर्व में यह सामर्थ्य नहीं कि वह कामदेव श्रमणो. पासक को निप्रप-प्रवचन से चलित कर सके, क्षभित कर सके, विपरिणामित कर सके। नए णं अहं सस्करस देविपस्स देवरण्णो एपमढें अमरहमाणे, अपत्तियः माणे अरोएमाणे इई हन्धमागए । तं आहो णं देवाणुप्पिया । इड्ढी जुई जसो पलं पीरियं पुरिसक्कार-परक्कमे लाद्ध पत्ते अभिसमपणागए। विट्ठा णं देवाणुप्पिया। इइदी जाव अभिसमपणागया, तं खामेमि णं देवाणुप्पिया ! खमंतु मज्झ देवाणु. पिया। खंतुमरहनि णं देवाणुपिया णाई भुज्जो करणयाए सिकटु पापयरिए पंजलिउडे एयमद्धं भुजो मुज्जो खामेइ खामित्ता जानेव दिसं पाउम्भूए सामव विसं पहिगए । तग णं से कामदेवे समणोवासए निरुवसगं तिकट्टु पडिम पारेह ॥ तू. २३ ॥ अर्थ-तब मैने शक्रेन्द्र के वचनों पर श्रद्धा, प्रतीति, कचि नहीं की। उनके वचन को मिथ्या सिद्ध करने के लिए तथा आएको धर्म से रिगाने के लिए में यहाँ आया और
SR No.090457
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhisulal Pitaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year
Total Pages142
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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