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श्री उपासकदशांग सूत्र-२
ANNA
MAMANAR
करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं जितना धन निधान के रूप में सुरक्षित था, इतना ही च्यापार में तथा इतना ही घर-विक्षरी के रुप में फैला हुआ था। गायों के छह बज थे। एक व्रज में इस हजार गाएं होती हैं। भगवान महावीर स्वामी चम्पा पधारे । परिषद धर्म सुनने के लिए गई । आनन्द के समान कामदेव मी गए, यावत् श्रावक व्रत ग्रहण किए । कालान्तर में ज्येष्ठ-पुत्र को कुटुम्ब का भार सौंप कर पौषधशाला में भगवान द्वारा बताई गई धर्मप्रज्ञप्ति स्वीकार कर धर्म साधना करने लगे।
देव उपसर्ग--पिशाच रूप
तए णं तस्स कामदेवरस समणोवासगरम पुचरत्तावरत्तकालसमयंसि पगे देवे मापी-मिच्छपिछी अंतिय पाउन्भूए तए णं से देवे एर्ग मह पिसायरूवं विउचड़, तस्स णं देवरस पिसापरूवरस इमे पपारवे वण्णावासे पण्णत्ते।
अर्थ-उस कामदेय श्रमणोपासक के पास मध्यरात्रि के समय एग मायोमिम्मा. दृष्टि देव आया । उसने एक विशाल पिशाध रूप को विकुवंणा की । उस पिशाच रूप का वर्णन इस प्रकार है:
सीसं से गोफिलजसंटाणसंठियं सालिमसेल्लसरिसा से केसा फबिलतेपणे दिपमाणा, महल्ल उहियाकमल्लसंठाणसंठिपं णिहाल मुगुंसपुंछ व तस्स भुम. गाओ फुग्गफुरगाओ, विगय-बीभग्छसणाओ सीसहिदिणिग्गयाउं अच्छीणि विगयवीमच्य दसणाई, कपणा जह सुप्पफत्तरं थेव घिगयीमदमणिज्जा, उम्भघुइसपिणमा से णासा, झुसिरा जमलचुल्लीसंटाणसंठिया दोऽवि तस्स णासापुडया, घोडयां व तस्स मंसई कलकविलाई विगयवीभच्छदसणाई ।
अर्थ--उस पिशाच का मस्तक गोफिलज-गाय आदि को बांटा खिलाने के बड़े टोकरे को ओंधा रखने पर जो आकार बनता है, उसके समान था। उसके केश घावल के तुस के वर्ण धाले (पिगल वर्ण वाले)चमकिले थे। ललाट का आकार ऐसापामानोबड़े घडेका