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द्वितीय अध्ययन
श्रमणोपासक कामदेव
जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महा.रेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगरस उवासगदसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयम पण्णते वोच्चस्स गं भंते ! अज्झयणस्स के अढे पण्णत्ते ? एवं खलु जंनू ! तेणं काले णं तेणं समएणं चंपा णाम णयरी होत्या, पुपणभद्दे चेहप, जिपसस्तू राया, कामदेवे गाहावई, महा भारिया । छ हिरण्यकोडीओ णिहाणपउसाओ, छ बुढिपउत्ताओ, छ पविस्थरपउत्ताओ, छ वया दसगोसाहरिसरणं घएणं । समोसरणं । जहा आणंदो तहा णिग्गओ तहेव सावयधम्म पडिवज्जइ सा घेव पत्तव्यया जाच जेट्टपुतं मित्तणाई आपुच्छित्ता जेणेष पोसहसाला तेणेव उवागण उवागछित्ता जहा आणंदो जाव समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्तिं उपसंपज्जित्ताणं विहरइ १८
___ मर्ष--जम्बूस्वामी पृच्छा करते हैं-'हे भगवन् ! भगवान् महावीर स्वामी ने उपासकांग के प्रथम अध्ययन के जो मात्र फरमाए, वे मैने आपके मुखारविंद से सुनें । इसरे अध्ययन में भगवान ने क्या भाव फरमाए हैं ? आर्य सुधर्मास्वामी ने फरमाया'हे जम्बू ! इस अवसर्पिणीकाल के चौथे आरे में जब भगवान महावीर स्वामी विचर रहे थे, उस समय सम्पा नगरी थी, पूर्णभद्र उधान था, जितशत्रु राजा राज्य करते थे, 'कामदेव' नामक गाथापति थे, जिनकी पत्नी का नाम 'मद्रा' था। कामदेव के पास छ