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पया सत्य का भी प्रायश्चित होता है ?
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अत: गौतमस्वामी का उक्त कपन पाप शान चौदह पूर्व में बाधक नहीं है। सस्य मोमने । भाव रखते हुए भी उपयोग नहीं पहुंचने से पसत्य भाषण हो घाम तो शास्त्रकार उन्हें बाराषक मानते हैं. विराधक नहीं।
गौतमस्वामी ने पारणा भी बाद में किया, पहले क्षमा याचना की। मागों के मे देदीप्यमान ज्वलंत उदाहरण 'भूल को भूल स्वीकार करने को आदर्श प्रेरणा देते हैं ।
नए णं से आणंदे समणोषासए गहरों सीलनारहिं हाल अपान भालेला षीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्म कारणं फासित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सहि भत्ताई अणसणाए छेदेता आलोइयपष्ठिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सोहम्मसिगरम महाविमाणस्स उत्तरपुरच्छिमेणं अरुणे विमाणे देषताए उबघण्णे । तत्थ णं अत्यगइयाणं देवाणं चस्तारि पलिओषमाई ठिई पण्णसा, सत्य णं आर्णपस्स वि देवरस पत्तारि पलिओषमाई टिई पण्णत्ता। भाणंदे भंते ! देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भषक्खएणं ठिहक्खएणं अणंतरं चयं चहत्ता कहिं गच्छिहिए? कहिं उववज्जिहिर? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिह । णिक्खेवो । सत्तमस्स अंगस्स उवासगवसाणं पढम अज्झयणं समत्तं ॥सू.१७ ।।
___ अर्थ- आनन्द श्रमणोपासक शीलवत आदि बहुत-से धार्मिक अनुष्ठानों से मारमा को मावित करते हुए बीस वर्ष तक मावक-पर्याय का पालन किया, उपासक को ग्यारह प्रतिमाओं का सम्यक पालन किया, मासिकी संलेखना से शरीर व कषायों को क्षीण कर साठ भक्त तक अनशन का त्याग कर (सम्पूर्ण जीवन में लगे) बोषों को आलोचना कर योग्य प्रायश्चित्त-प्रतिक्रमण किया तथा आत्म समाधियुक्त काल कर के प्रपम देवलोक 'सौधर्म कल्प' के सौधर्मावतंसक महाविमान के ईशानकोण में स्थित अमण नामक विमान में देव रूप में उत्पन्न हुए । वहाँ कई देवों की स्थिति चार पल्पोपम की कही गई है, सवनमार आनन्द देव की स्थिति भी चार पल्योपम की है। गौतमस्वामी ने पूछा-'हे भगवन् । आनन्द देव चार पल्योपम की स्थिति पूरी होने पर देवभव का क्षय कर के मापृष्य पूरा होने पर कहाँ जन्म लेंगे, कहाँ उत्पन्न होंगे ?' भगवान् ने फरमाया-"हे