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श्री उपासकवशाग मूत्र-१
अर्ष-- आनन्द अमणोपासक से भगवान् को धर्मदेशमा एवं प्रताधारणको बाल मुन कर शिवानन्या नुत प्रसन्न हुई। उसने अपने कोम्बिक पुरुषों को बुला कर कहा-'हे देवानुप्रियो ! जिसके उपकरणमुकुमार एवं शीघ्न गति युक्त है ऐसा अतीव शोभनीय रय उपस्थित करो।' रथ लाया जाने पर उसमें बैठ कर भगवान की सेवा में गई। भगवान ने उसे तया अन्य परिषद को धर्मदेशना फरमाई । आनन्य श्रमणोपासक की भांति शिवानन्वा ने भो माविका के बारह बस धारण किए । भगवान को धन्वना नमस्कार कर, रथ में बैठ कर अपने घर मा गई।
__ 'ते' ति भगवं गोयमे समणं भगर्ष महावीर वंदद नममइ मंदिसा ममंसित्ता एवं व्यासी-पडणं भंते ! आगंदै समगोपालपदेशशुपियाणं लिए मुंडे जाव पव्यहत्तप? 'णो इणडे समहे, गोयमा ! आदेणं समणोधासा पहर वासाई समणोवासगपरियागं पाउणिहित पाउणिहिता जाव सोहम्मे कप्पे अरुणे बिमाणे देवताए उपज्जिहिए। सत्य णं अत्यगायाणं दवाणं पसारि पलिओवमाई लिई पण्णता, सत्य णं आणवस्सऽवि समणोबासगस्स अत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णता । तप णं समणे भगवं महावीरे भण्णया कयाइ पहिया आव विहर।
___ अर्थ- भगवान् गौतमस्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को धम्बनानमस्कार कर पूछा-'हे भगवन् | क्या आनन्द श्रमणोपासक आपके पास वीक्षित होंगे' ? भगवान् ने फरमाया-'हे गौतम ! यह अभं समर्थ नहीं। आनन्द श्रमणोपासक बहुत वर्षों तक श्रावक-पर्याप का पालन कर प्रथम देवलोक सौधर्म-कल्प के अक्षण नामक विमान में उत्पन्न होगा । वहाँ अनेक देवों को स्थिति चार पल्पोपम की कही गई है, तदनुसार आमन्द की भी चार पस्योपम की देव-स्थिति होगी। किसी दिन विहार कर भगवान् अन्यत्र पधार गए।
नए णं से आणंदे समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाच पडिलामेमागे विरघइ । नए णं सा सिवाणंदा भारिया ममणोवासिया जाया जार पतिलामेमाणी विहरह ॥ सू.९॥