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श्री उपासकदर्शाग सूत्र-१
अपं-बाधक के बारहवें व्रत 'अतिथिस विभाग के पांच अतिचार जाने परन्तु आचरण नहीं करे । यथा
१ सचित्त निक्षेप--अचित्त निर्दोष वस्तु को नहीं देने को बुद्धि से सचित्त पर रख देना।
२ सचित्त पिधान--कुबुद्धि पूर्वक अचित्त वस्तु को सचित्त से ढक देना।
३ कालातिकम-पोचरी का समय चुका कर शिष्टाचार के लिए बाद में दान देने की तैयारी दिलाना।
४ परग्यपदेशन- नहीं देने की बुद्धि से अपने आहार को दुमरों का बताना। ५ मत्सरिता-ईयां वश दान देना अथवा वूसरे वाताओं पर ईपर्याभाव लाना आदि ।
भयाणंतरं ष णं अपच्छिममारणांतिय संलेहणा-सणा-आराहणाए पंच अपारा जाणियध्या ण समायरियव्वा, तं जहा-इहलोगासंसप्पओगे, परलोगा. संसपओगे जीवियासंसप्पओगे मरणासंसप्पआंगे कामभोगासंसप्पआगे ॥स.॥
____ अर्थ-तवन्तर अपश्चिम (जीवन के अंत में की जाने वाली) मारणांतिक (मरण के साथ ही जिसकी समाप्ति होगी) संलेखना (कषाय और शरीर को क्षीण करना) असणा आराधना (आसेवना) के पाँच अतिचार कहे गए जो जानने योग्य है, आचरण घोग्य महीं है--
१ इहलौकाशंसा प्रयोग--आगामी मनुष्यभव में राजा-चक्रवर्ती आदि बनने की इच्छा करना।
२ परलोकाशंसा प्रयोग-देवादि में इंद्र महमित्र, लोकपाल आदि बनने की इच्छा करना।
३ जीविताशंसा प्रयोग--'शरीर स्वस्थ है, लोगों में संपारे के समाचार से कीति फल रही है, अतः लम्बे काल तक जीवित रहूँ, ऐसी इच्छा करना।
४ मरणाशंता प्रयोग -बिमारी व कमजोरी ज्यावा होने से शीघ्र मरने की इच्छा करना।
५कामभोगासा प्रयोग- मेरे संयम तप के फलस्वरूप मुझे उत्सम वैविक और