________________
भ्रानन्द श्रमणोपासक -- प्रतिचार
१५
२ का कांक्षा -- मिध्यात्वमोहनीय के उदय से अन्य दर्शनों को ग्रहण करने की इच्छा
-
'कंवा अन्नान्नणग्गाहो' ।
३ विच्छिा - विचिकित्सा - धर्मकृत्यों के फल में संदेह करना । साधु के मलीन वस्त्रादि उपधि देख कर घृणा करना ।
४ पापसंसा यहाँ पासंद शब्द का प्रथं 'व्रत' से है । सज्ञयं प्रणीत महंतु दर्शन से बाहर परदर्शनियों की स्तुति गुण-कीर्तन आदि करना ।
५ परपासंसंथ -- परपासंडियों के साथ आलाप संलाप, शयन, मासन, भोजन भादि परिचय करना परपासंसंस्तव कहलाता है ।
तपाणंतरं चणं थूलगस्स पाणावायवेरमणस्स समणोषासरणं पंच अइयारा पेघाला जाणिव्वा ण समायरियच्चा, तं जहा-पंधे, वहे, छविच्छेए, अहभारे, भत्तपाणचोच्छेए ॥
अर्थ--तवन्तर (प्रथम अणुव्रत स्थूल प्रकाशित विरमण के पांच प्रधान अतिचार धावक को जानने योग्य हैं, किंतु समाचरण योग्य नहीं। वे ये हैं--१ बंध २ वध ३ छविच्छेद ४ अतिभार और ५ भक्त पान विच्छेद |
विवेचन- १ बंधे - मनुष्य, पशु आदि को साँस लेने में, रक्त संचालन में अवयव संकोचविस्तार में, या बाहार पानी करने में बाधा पड़े, इस प्रकार के गाढ़े रस्सी आदि के बंधन से बांधना । तोता-मैना को पिंजरे में बंद करना, बंदी बनाना भादि इस प्रतिचार के अन्तर्गत है ।
२ वहे - वध - अंग भंग करना, ममन्तिक प्रहार करना, हड्डी बादि तोड़ देना, ऐसी पोट जो तत्काल या कालान्तर में मृत्यु अथवा भयंकर दुःख का कारण बने ।
३ छविच्छेद- शरीर की चमड़ी, नाक, कान, हाथ, पाँच आदि काटना, नासिका सेवन कर 'नाथ बालना, सींग-पूंछ मादि काटना, कान चीरना, बधिया करना आदि ।
४ अतिभारारोपण पशु, तांगा, छकड़ा गाड़ी, हमाल, ठेला, हाथ-रिक्शा, भादि पर उनकी सामयं से अधिक भार वहन करवाना अतिभार' है ।
५ भोजन-पानी विच्छेद - पशु, प्रथवा मनुष्य आदि को अपराध वश अथवा अन्य कारणों से भोजन पानी समय पर न देना अथवा बिल्कुल बंद कर देना भोजन करते हुए को काम में लगा कर अंतराय देना आदि 'भक्तपान विच्छेद' है ।