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________________ सकाळपुत्र समझा और श्रमणोपासफ बना के साय मोग ही भोगता है । इलिये तुम उस पुरुष पर न तो आक्रोश करोगे यावत् प्राणरहित नहीं करोगे। पदि उत्थान यावत् पुषकार-पराक्रम नहीं है, सभी भाव नियत है, जो होना होता है वही होता है, तो तुम बरतन पुराने वाले यावत् फेंकने वाले को तथा अग्निमित्रा मार्या के साथ कुकर्म करने वाले को आक्रोश यावत् प्राण वप क्यों पोगे? अत: उरणार यावत् पुरवसाराम मह मामले का तुम्हारा मत मिथ्या है।" सकडालपुत्र समझा और श्रमणोपासक बना एस्थ पं से सहालपुत्ते आजीविओवासए संबुद्ध । तए णं से सद्दालपुस्त आजीविओवासए समणं भगवं महावीरं षंदइ णमंसह, चंदित्ता णमंसित्ता एवं षयासी-"इच्छामि णं मंते! सुभ अंतिए घम्मं णिसामेत्तए।" तए णं समणे भगवं महावीरे सहालपुस्तस्स आजीविओवासगरस तीसे य जाव धम्म परिकहेइ । अर्थ- भगवान् का युक्तियुक्त वचन सुन कर सकमालपुत्र में प्रतिबोध पाया। उसने भगवान को बदना-नमस्कार कर कहा-"हे भगवन् ! मेरी इच्छा है कि आपसे धर्म सुन ।" तब भगवान् ने उसे एवं अम्प उपस्थित जन-समवाय को धर्म-कथा फरमाई। तए णं से सहालपुसे भाजीविओवासए समणस्स भगवओ महषीरस्स अंतिए धम्म सोचा णिसम्म हहतुह जाव हियए जहा आणंदो महा गिहिधम्म पडिपज्जा । णवरं एगा हिरण्णकोडी णिहाणपउत्ता एगा हिरण्णफोडी बुड्ढीपउत्ता एगा हिरण्णकोही पवित्थरपत्ता एगे पर दसगोसाइस्सिएणं वएणं । जाव समणं भगवं महावीरं वंदहणमंसह, वंदित्ता णमंसित्ता जेणेक पोलासपुरे पयरे तेणेव उवा. गच्छद उवागछितापोलासपुरणयरं मझमझेणं जेणेष सए गिहे जेणेव अग्गिमित्ता भारिया सेणेव उवागच्छद, उवागत्तिा भग्गिमित भारियं एवं षयासी-"एवं खलु देवाणुप्पिए ! समणे भगवं महावीरे जाव समोसदे, तं गच्छाहिणं तुमं समणं भगचं महावीरं वंदाहि जाव पज्जुवासाहि, समणस्त भगवओ महावीररस अंतिए पंचाणुब्वयं सत्तसिपखावइयं दुधालसाविहं गिहिधम्म पडिपज्जाहि।" तर णं सा
SR No.090457
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhisulal Pitaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year
Total Pages142
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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