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________________ पहुंचे हैं। तात हे मध्य तूं प्रथम तौ ऐसा सरधान करि कि मोकू गैसो मोक्ष कब होय ? ऐसे गुरु वन्नन सुनिक महाविनयतें रुचि सहित पूंछता भया। भो गुरो सरधान का करावनहारा! सम्यक्त्व कैसे होय सो मोहि कहौ। तब गुरु या शिष्यकं रुचिक जानि कहते भये। तत्त्वार्थसूत्र की फाकी तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् । थाका || अर्थ-भी भव्य । तत्त्वन का श्रद्धान है सो ही सम्यग्दर्शन है । तब शिष्य कही भो गुरो! तत्व कहा सो कहौ। तब गुरु दया करि कही-भो वत्स! तत्व भेद जीव अजीव कर दोय प्रकार है। तब शिष्य कही-भो गुरो! जीव अजीव का स्वरूप मोहि विशेष समझाय करि कहाँ। तब गुरु कहैं हैं। भो भव्य ! तूं चित्त देय सुनि । अजीव का स्वरूप तोहि प्रथम कहों हो। सो अजीव-द्रव्य पञ्च प्रकार है। धर्म-द्रव्य, अधर्म-द्रव्य, काल-द्रव्य, आकाश-द्रव्य, पुद्गल-द्रव्य-ये पञ्च द्रव्य अजीव हैं जड़ हैं। तिनमें धर्म, अधर्म, काल, प्राकाश-राज्यारि अजीव-द्रव्य अमूर्तिक हैं। सो इनका स्वरूप आगे कहेंगे, तातें यहां नहीं कह्या है और पुद्गल अजीव-द्रव्य है, सो मतिक है, सो ताक दाय भेद हैं। एक तो नो-कम, एक द्रव्य-कर्म। तहां जाकों देखि जो कर्म प्रगट होय, सो नो-कर्म। जैसे-अपने वैरीकौ देखि क्रोध प्रगट होय, सो वैरी कौ क्रोध का नो-कर्म कहिए तथा रूपवान स्वीकौ देखि विकार भाव होय, सो विकार भाव का नो-कर्म स्त्री है। ऐसे सर्वत्र नो-कर्म का स्वरूप जानना और द्रव्य-कर्म है, सो पुद्गलोक है। सो ताके तेईस भेद हैं। सो ही कहिरा हैं; अणु, संख्यातागु, असंख्याताणु, अनन्ताणु, आहाराणु, आहार अग्राह्याणु, तैजस अगु, तैजस अग्राह्याणु भाषाणु, भाषा अग्राह्याणु मनोवर्गणा, मनो अग्राह्यवर्गणा, कार्मणवर्गणा, ध्रु ववर्गला. सान्तरवर्गणा.शन्यवर्गरणा, प्रत्येक वर्गणा, ध्र वशन्यवर्गणा, बादर निगोद वर्गणा, बादर शून्य वर्गणा, सूक्ष्मनिगोदवर्गणा, नभो वर्गणा, महास्कन्ध वर्गणा ऐसे र तेईस जाति के पुद्गल वर्गणा के भेद हैं। सो अपने-अपने स्वभावरूप सदैव वरते हैं। र सर्व भेद पुदगल के तीनलोक प्रमाण महास्कन्ध है तामें तिष्ठे हैं। ए महास्कन्ध है सो सर्वलोक में जैतो ( जितने) परमाण हैं तिन सर्व का एक बन्धन रूप है। अनादि-निधन महाबत समाति महास्कन्ध जानना । तामें असंख्यात परमाए तो ऐसे हैं सो स्क्रन्धरूप नाहीं, एक-एकही हैं। असंख्याते स्कन्ध दोय परमाणु के हैं, असंख्याते स्कन्ध तीन-तीन परमाणु के हैं। ऐसे ही एक-एक अधिक परमागून के स्कन्ध च्यारि परमाणु का स्कन्ध,
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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