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________________ कहैं ऐसा कथन । आगे केई मतवाले मोक्ष आत्माकों सर्व प्रकार अज्ञान मानें, ताका एकान्त मिटाय कोई नय ज्ञानरहित मोक्ष जीवकों बताइए है श्री सु E मी अज्ञानवादी भव्य आत्मा ! तूं सर्व नयकरि मोक्ष आत्मा ज्ञानरहित मानें है । अरु तूं ऐसा कहे है। जो आत्मा में पर-पदारथ देखने-जानने की शक्ति है सो ही उपाधि है। जब पदारथ के देखने-जानने की शक्ति मिटेगी राजीव को मोक्ष होगा। ऐसा है सी तो असत्य तोकों पूर्व बताया हो । श्रम ज्ञानरहित मोक्ष टि आत्मा है। यह वचन कोई नय हैं सो तोकों बताइए है। जो या ज्ञान तैं रहित मोक्ष जीव है, सो तूं चित्तदेय सुनि देखना- जानना तो जीव का स्वभाव है तातें ज्ञान का अभाव भये तो आत्मा का अभाव होय । तातें जेते इन्द्रिय जनित पदारथन को देखना-जानना, सो आत्मा में उपाधि है, तबलौं मोक्ष आत्मा नाहीं । इन्द्रिय जनित ज्ञान का अभाव होय, केवलज्ञान होयगा। तब जीव मोक्ष होयगा। तातें उपाधि ज्ञान जो इन्द्रिय जनित ज्ञान, सो तो इन्द्रिय ज्ञान है। तबलों पदारथन में राग-द्वेष होय है। जब इन्द्रिय ज्ञान मिटि केवलज्ञान होयगा, वह अतीन्द्रिय ज्ञान है, सो यह अतीन्द्रिय ज्ञान आत्मा का स्वभाव है । याके भए पदारथ तैं रागद्वेष नाहीं होय है । तातें भी भव्य ! ज्ञानवादी सुनि मोक्ष आत्मा है सो सर्वज्ञ लोकालोक का जाननहारा, घट-घट का अन्तरयामी भगवान, ताके अतीन्द्रिय ज्ञान है सो कर्म-बन्ध रहित है। सो तो मोक्ष जीव का स्वभाव है, ऐसा जानना। मोक्ष आत्मा में इन्द्रिय ज्ञान नाहीं । यह इन्द्रिय ज्ञान है सो विनाशिक है, चंचल है, होन ज्ञान है, कर्म बंध करता है । सो यह इन्द्रिय-ज्ञान-रहित, मोक्ष आत्मा जानना। ऐसा इस नयतें मोक्ष आत्मा ज्ञान-रहित कथा । इति मोक्ष आत्मा, इन्द्रिय ज्ञान -रहित कोई नय है, सो कथन कया। आगे केई मतवाले जैसा हो जीव मरे तैसा ही उपजता मानें हैं, सो इसका एकान्त मत खंडकें अब कोई नय करि जैसा मरै, तैसा ही उपजें है, ऐसा कहें हैं। भो स्थिरवादी । तेरा मत व तेरी नय तो असति है, सो तोकों का अब कोई नय तेरा वचन सत्य कहैं हैं, सी सुनि जो तूं जानें कि जैसी पर्याय छोडें सो हो पर्याय उपजै, सो सर्व प्रकार तेरा एकान्त मत तौ असत्य है। कोई नयतें वही पर्याय धरै है, कोई और भी पर्याय धरै है, सो तूं सुनि। जिनदेव का है ता प्रमाण कहिये है - जो मनुष्य मरै शुभ भावनतें देव होय, अशुभ भावनतें नारकी व पशु होर और कोई सरल भावतें मनुष्यतें मनुष्य भी होय तो १० ७३ ७३ 名
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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