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________________ हो जड़-अचेतन वस्तुत तं चेतन पदारथ वस्तु होती नाहीं। जीव वस्तन तं अजीव वस्त होती नाही. ऐसा नियम है जो पंच जड़ ताव ते जीव होता तो पंच तत्त्वनतें लोक भरचा है सो हर कोई पंचताय मिलाय जीव ताव बनाय लेता। पुत्र-कलन करने कू काहै की कोई उपाय करते। हे तववादी! पंचतत्त्व मिलाय करि तू हमारे पास पांच जीवतत्व बनाय तौ सही, देखें कैसे बनाइए है। जैसे—तने दारू का दृष्टान्त दिया. सो जैसे-गुड़-दही, मऊआ, विरजड़ी इत्यादिक मिलाय हर कोई दास कर लेय है तैसे एक-दो जीव तू भी बनाय लेय। अरु त कहेगा, मेरै बने तौ नाही बने । तो हे भाई! ऐसा सरधान झूठा है। वृथा तू काहैको हठग्राही होय है। अजीव तस्तु ते 'जीव वस्तु होती नाहीं। संसार विर्षे जीव और अजीव-ये दोय तत्व अनादि-निधन हैं। यह अजीव वस्तु ते करया, जीव होता नाहीं। तातें जाकै मत वि पंच अजीव तत्त्वन का जीव होता मान, ताके आप्त, आगम, पदारथ, असत्य हैं। रीसे अजीव का जीव ताव होता माने था, तार्को समझाय, यथा-योग्य जिन भाषित तरवन का सरधान कराया। इति तत्त्ववादी व पंचतत्व अजीव ते जीव होता माने था ताका सम्बाद कथन । २०! अब इन एकान्तवादीन के एक पक्ष कं मिथ्यात्व बताय इनहीं के वचन तिनको केई नय करि स्थावाद मतत मिलाय, सत्यमैं बताईए है। जैसे-अन्धन का हाथी, अन्धन के वचन करि एक पक्ष असत्य हैं अरु नेत्रनवाला, अन्धन के वचन मिलाय सबकों हाथो कहै, कोई-कोई नय अन्धन के हाथी कहने के वचन सत्यमैं बतावै, तैसे ही कधन कहिए है। भो संसार विर्षे एक आत्मा माननेहारे! जो एक हो आत्मा की सर्व लोक में सत्ता माने है सो या नय करिक तौ तेरा शब्द असत्य बताय आये। जैसे--अन्धा दगली की बाँह ऐसा हाथी माने, सो तो असत्य है, ऐसा हाथी होता नाहीं। तो इन अन्धे का वचन कोई नयत सत्य है। ऐसे ही तेरा सब संसारमैं आत्मा है सो सर्व बात तेरी या नयते सत्य है । सो तू सुनि इस संसारमैं अनन्ते आत्मा भिन्न-भिन्न सत्ताको धरैः सर्व लोकमैं सूक्ष्म जाति के मरे हैं । पृथिवी कायिक सूक्ष्म, तेजकायिक सूक्ष्म, वायुकायिक सूक्ष्म और वनस्पतिकायिक सूक्ष्म-इन पंचस्थावर सूक्ष्मन करि यह लोक भरया है। घी घटवत । जैसे—धी का घडा भरचा है। तामैं कोऊजगै वाली नाहीं। तैसे ही यह लोक सूक्ष्म जीवन ते भरचा है। तहाँ वनस्पति सूक्ष्म तौ अनन्त हैं। चारि स्थावर सूक्ष्म असंख्यात हैं । सो सर्व सूक्ष्म जीवन करि पूरित है । कोई स्थान खाली नाहीं जल,थल, अग्नि, वायु,
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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