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________________ उज्जैन नगरी का राज्य, राजा मुंज करें। सो एक दिन राजा मुंज, मनमें दगा विचारता भया। जो, सिंहल जोरावर है । यातें मेरा राज्य नहीं रहेगा। तब मन्त्री कूकही। सिंहल कू मारौं। तब मन्त्रीने कही। दोष कहा ६०२ सो कहो। निर्दोष को मारे, महा-पाप है। तब एक दासी सौ मिलि, ताको अंधा किया। तिस चेटोने. सिंहल । कों, तेल मदन करतें, ताके नेत्र फोड़े। तब राजा मुंज, यह सुनि दुख करता भया। जो पुत्र तौ दीक्षा ले गये, || भाई अंधा भया। अब कुल नाश भया। मैंने महा-पाप किया। इत्यादि प्रकार पछताता भया सौ एते. एक | भोजक-याचकने आय, राजा मुंज कूबधाई दई। कहो मो राजन् ! तुम्हारे भाई सिंहलके पुत्र भया। तब || राजा मुंज राजी होय. सिंहलके घर आया सो द्वार पै एक श्लोक लिखा देख्या श्लोक-वर्षाणि पञ्च पञ्चाशत्, सप्त मासान् दिनत्रयं । भोजराजेन भोक्तव्या, सुखेन पक्षिण दिशा ॥ १ ॥ __यह श्लोक देस, राजा मुंजने पण्डितन बुलवाय, कही। श्लोक किसने लिच्या १ तब एक पण्डितने कही। | भो राजन् । इस बालक गएका मारामार होनहार, मैंने लिख्या है। ये भोजराज, दक्षिण दिशा ५५ वर्ष ७ महीना ३ दिन राज्य करेगा। ऐसी सनि, सर्व राजी भये। बालक अनेक विद्यानिधान, क्रम करि बड़ा भया। तब राजा मुंजने भोजपुत्रका व्याह करि, राज्य दिया सो राजा भोज, जगत्में अपने प्रताप करि, राज्य करें। इस भोजराजाके यहां. एकवररुचि नाम पण्डित रह सौ ताकी पुत्री. वर-योग्य भई। सो पिता ने पुत्री सूकही। तू कहै, ताहि परणाऊं। तब पुत्री ने कहीं। ऊंच-कुलकी कन्या, अपने आय, घर नहीं याचै। जो भाग्यमें होय, सो पावै । तथा व्यवहारनय करि, माता-पिता जाकू परिणावै, सो प्रमाण है। ऐसे पुत्रीके वचन सुनि, पिता महाकोप करि, एक महा दरिद्र. मूर्ख पुरुष खोज, ताहि कन्या परिणाई। तब कन्या ने कहो, पूर्व-कर्म की कौन मैट ? रोसी जानि, वह समता धरती भई। पोछे वररुचि विचारो जो राजा भोज पूछेगा, तुम्हारा दामाद कैसा । पण्डित है? तो मोहि लज्जा उपजेगी। ऐसा जानि वररुचि, ता दामाद कं बहत पढ़ावै। परन्तु ताकी एक अक्षर | भी नहीं आवै । बहुत कालमें, आशीर्वाद वढ़ाया सो राजा भोजको सभामें अनेक पन्डित इकट्ट भये । तहाँ वररुषि- गि का दामाद जाय, राजा को आशीष वचन देते अशुद्ध बोल्या। तब राणा ने कही, मूर्ख है। तब वररुचि ने भशुद्ध वचन कौं, अपनी पंडिताई करि, शुद्ध करि, राजा को बताया। घर जाय अमाई को, मान-संडनहारे वचन कहे।।
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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