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जीव असंख्यात जावें, तो भी भीड़ नहीं होय । तहां क्षुधा तृषा, नहीं लागे । राग-द्वेष नहीं होय । क्रोध मान माया लोभ नहीं उपजैं। इन आदिक समवशरण में अनेक अतिशय होंय हैं। और समोवशरणके बाह्य १०० योजन पर्यंत, दुर्भिक्ष, ईति, मोति नहीं होय । या प्रकार भगवान्का अतिशय होय है । इन्द्रको आज्ञा तें धनपति देव, समोवशरण रचे है। ऐसे समोवशरण में विराजमान श्रीभगवान् तिनका दर्शन जिनकूं प्रत्यक्ष होय ते भव्य धन्य हैं। हम पुण्य-सम्पदा रहित. प्रत्यक्ष दर्शनकों असमर्थ हैं। तातें मन, वच, तन, करि, जिनदेवको परोक्ष नमस्कार करें। सौ वे भगवान्, हम इस ग्रन्थके पूरण होतें अन्त- मङ्गल विषै, सहाय होऊ । ऐसे समोवशरण वन किया। आगे भगवान्के विहार कर्मका स्वरूप कहिये है। तहां समोवशरण विषै विराजमान भगवान्के विहारका जब समय हो, तब इन्द्र महाराज अवधि तैं जानिकें, लौकिक समय साधवेकूं, ऐसी विनति करें हैं। है भगवान् ! यह विहार समय है, सो विहार र अनेक भव्य जोवनकूं धर्मोपदेश देयके, उनको सुमार्ग बताय तिनका मला कीजिये। तब देवेन्द्रका प्रश्न पाय, भगवानका तौ विहार-कर्म होय । अरु पिछली समोवशरणरचना विघट जाय सो भगवान् जिस मार्ग विषै विहार करें, तिस मार्ग विषै दोऊ तरफ नाना प्रकार भट् ऋतुके फल-फूल सहित अनेक वृक्षनकी सघन पंक्ति, होय जाय हैं। दोऊ तरफ, चौवलनकै खेत, महा रमणीक हरित वर्ण होय जाय हैं नदी, बावड़ी, महल पंक्ति, पर्वतनकी शोभा, मनोहर होय जाय है । तिस मार्ग की सर्व भूमि दर्पण समान निर्मल होय जाय है । तिसके दोऊ तरफ चांवलनके फूलै वनकी पंक्ति, अरु तिन चोवलन के निकट दोऊ तरफ निर्मल जलको धारा धरें, नदी समान नहर, चल्या करें है। और तिस मार्ग पै, जाकाश तैं मेघकुमार जातिके देव, सुगंधित जलके करा, मोती समान बारीका बर्षावते जांथ हैं। और पवनकुमार जातिके देव, मन्द-सुगंध पवन, चलावते जाँय हैं। एक योजन पर्यन्त, सर्व भूमि, कंटक रहित करते जांय हैं। तिस मार्ग विषै, भगवान तौ समोवशरणको ऊंचाई प्रमाण आकाशमें गमन करें, तिनके पद-कमलनके नीचे, १५-१५ कमल के फूलनकी पंक्ति, १५ पंक्ति देव रचि देंय । सो २२५ कमलनका समुदाय, एक जायेंगे झूमका रूप रहे । ताके मध्यके कमल पै, च्यारि अंगुलके अन्तर में पांव धरते भगवान् आकाश विषै मनुष्य की नाई ग भरतै विहार करें। यहां प्रश्न जो भगवान् कैं तो इच्छा नाहीं । सो इच्छा बिना डग कैसे भरी जाय ? ताका
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