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________________ नाभिराजा भये। तिनके कल-मण्डन, श्री वादिनाथ पुत्र भये, सो हमने सर्व कर्म-भूमि का उपदेश दिया। क्षत्रिय, वेश्य, शद्र. तीन वर्ण स्थाप संसारी-मार्ग बताया अरु इनके पत्र भरत नै, धर्म की प्रवृत्ति चलाने क, ब्राह्मण-कुल थाज्या। सो च्यारि वर्ण जानना। जब काल-दोष ते, सर्व कलन का माचार हीन भया। तातें ब्रह्म-क्रिया दया बिना भई। जीव जनक क्रिया रूप भये परन्तु कुल भेद नहीं गया। अनेक प्रकार आचार होय, तो भी कुल-ब्रह्म कह्या. सो जग में प्रगट ही है।श कुल तो कैसा ही होय बस क्रिया माचार जाका दया सहित उत्तम शीलादिक गुण सहित होय, सो किया ब्रह्म कहिये ।। स्त्री आदि परिग्रह का त्यागी होय, सो त्याग ब्रह्म कहिये।३। चेतन्य गुण सहित, अमूर्ति, जीव पदार्थ, सो स्वभाव ब्रह्म है।8। ये च्यारि भेद, ब्रह्म के कहे। सो विवेको उत्तम पुरुषनक सबका सहए धारण करना योगा है। इति श्री सुदृष्टि तरङ्गिणो नाम अन्य के मध्य में अष्टमी प्रतिमा से लगाय ग्यारहवीं प्रतिमा पर्यन्त, कथन करनेवाला अड़तीसवाँ पर्व सम्पूर्ण भया ॥ ३८ ॥ ऐसे यह श्रावक-धर्म कह्या और मुनि-धर्म के अष्टाविंशति (२८)मुल गुण हैं। ताका स्वरूप कह आये सो ॥ यह मुनि-श्रावक का धर्म, परम्पराय मोक्ष फल प्रगट करे है। याका तरन्त फल तौ देव-सोक की विभूति सहित नाना प्रकार इन्द्रिय-जनित भोग हैं। जार्को जैता काल संसार में रहना होय, सो जीव श्रावक-धर्म त मनुष्य-देव के सुख पावै। पीछे भव-स्थिति पूर्ण भये, मुनि-धर्म का साधन कर, मोक्ष पद पावै है। तातें जो कोई भव्यक, इन्द्रिय सुख का लोभ होय, सो इस श्रावक-धर्म का साधन करौ और जे भव्य निकट संसारी अतीन्द्रिय सुत्र चाहे, सो मुनि-धर्म आदरौ। ऐसा यह मुनि-श्रावक का धर्म भव्य जीवनकू सदा-काल, मङ्गलकारी होऊ। यह सुदृष्टितरजिसी नाम ग्रन्थ है। सो या विर्षे प्रथम तो गेय-हेय-उपादेय का कथन है सो विवेकी अपना हित जानि, हेय-गैय-उपादेय करौ केताक कथन या विई, विवेक को वृद्धि के निमित्त उपदेश रूप है 1 ताके रहस्यकौं जानि, धर्मात्मा अपना कल्याण करौ। अब यहां इस ग्रन्ध का करता जैन-शास्त्र के अर्थ कू अगाधि पानि, अपनी बुद्धि सामान्यता रूप, जानता भया। जो यह जिन-वचन का अर्थ तौ, अपार है, याके सम्पूर्ण व्याख्यान करने कौं, गराधर देव भी समर्थ नाहीं। तो हमसे किंचित् बुद्धि-धन के धारीन ते, सर्व अर्थ कैसे कह्या पाय ? असा
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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