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________________ श्री सु Y ष्टि ५१२ रहित । सामायो तस भासयो सुत्त कहिये, या शास्त्र में सामायिक कला है। भावार्थ-तहां पञ्च स्थावर हैं सो पृथ्वी, खोदें नाहीं । जल, मथै नाहीं । अग्नि जलावे- बुझावें नाहीं । पंखादि तैं वायु कम्पनादि करि, वायुका नै नाहीं । वनस्पतिक छेदे विदारे-छोले नाहीं। ये पांच स्थावर एकेन्द्रिय जीव, तिनमें समता-भाव करि, दया धारि, इनको अभयदान देय, घातै नाहीं । बे-इन्द्रियादि त्रस स्थावरनको समान जानि, स हिंसा का त्यागी, सर्व क नहीं सतावै । आप समान जानि सर्व तैं समता भाव राख अपनी तरफ तैं सर्व कूं सुख का अभिलाषी स-स्थावर जीवन के अभयदान देवे रूप परिणति राखें । अन्तरग-बहिरङ्ग तप बारह संयम बारह व्रत इनको बधवारी वांच्छे । आर्त-रौद्र-ध्यान का त्यागी होय ऐसे भाव वर्ते, सो सामायिक जानना । ताही सामायिक के पञ्च अतिचार हैं । सो कहिए हैं। प्रथम नाम-मन दोष, वचन दोष, काय दोष, विस्मरण दोष और अनादर दोष – इन पांच दोषन का अर्थ कहिये है। तहां सामायिक करते समता भाव तजि कैं प्रमाद तैं अनेक आर्त-रौद्र भाव-विकल्प करें, सो मन दोष है । २ । जहां सामायिक करते पञ्चपरमेष्ठी की स्तुति आलोचना तत्त्व का विचार वैराग्य भाव का चिन्तन ध्याता-ध्यान ध्येय का विचार इत्यादिक शुभ क्रिया तजि प्रमादवशात् दुर्वचन बोल उठना, सो वचन दोष है। २१ जहां सामायिक करते शुद्धासन तजि आसन चञ्चल किया करै, सो काय अतिचार है। ३ । जहाँ सामायिक करते पाठ भूलि-भूलि जाय कि जो मैंने यह पाठ पढ़या अक नाहीं ? मैं कहा पढ़ों हौं ? ऐसा भ्रम-भाव रहै, सो विस्मरण दोष है । ४ । सामायिक करतें वचन- काय प्रमाद सहित राखेँ । अनादर भाव तैं सामाधिक करें, सो अनादर दोष है । ५ । जो इन पांच दोषकों टाले सोही याका नाम शुद्ध सामायिक व्रत है। इस सामायिक व्रत के बत्तीस अतिचार हैं। तिनकों व्रतधारी धर्मो टा है, सो ही कहिए है। प्रथम नाम - अनादर, ततध्व, प्रतिष्ठा, प्रतिपीड़ित, दौलायत, अंकुश, कच्छप, मछोव्रत, मन, दुष्ट, बन्धन, भय, विभ्य, गौरव वृद्धि, गौरव न्यति, प्रतिनीति, प्रदुष्ट शब्द, ताड़ित, हीलित, त्रिबलित संकुचित दृष्टि, अदृष्टि, करमोचन, लब्धि, आलब्धि होन, उद्धत्, दो चूलि, मूक दादुर और चूलित – ये बत्तीस हैं। इनका अर्थ-तहाँ सामायिक करते नमस्कारादि क्रिया करै, सो प्रमाद सहित, विनय रहित करें. सो अनादर दोष है। 21 सामायिक करते, विद्या के मद सहित, उद्धत् होय, अशुद्ध क्रिया करै, सो ततथ्व दोष १११. G रं वि
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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