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________________ आयु पर्यन्त है और तिस व्रत में घटाय, रोज-रोज की मर्यादा करनी तथा वर्ष, षट मास, चतुर्मास, एक मास, पन्द्रह दिन, पहर, घड़ी का नियम करना। जो राते काल, राते दिन, एते मास ताईं, एते भोग-उपभोग राखे। भोग वस्तु में रातै अन्न, एते मेवा, सावने; अधिक नाहों। ऊपर-उपभोग में राते वस्त्र, गाड़ी, रथ, घोड़ा, हस्ती, महल, बिछौना, स्त्री एते-एते राखे। सो भोगना अधिक नाहीं। एते क्षेत्र में कोस, दश-पांच धनुष, जाऊँगा। ये क्षेत्र में राते काल ताई रहूँगा इत्यादिक नियम रूप मर्यादा सो देशवत है । याही के पांच अतिचार हैं, सो कहिये हैं। प्रथम नाम--आसन-शयन, पर-प्रेक्षण, शब्द, रूप और पुद्गल-क्षेपण—ये पांच हैं। इनका अर्थ-जहाँ जेते स्थान का परिमारा करि, जेते काल पर्यन्त दृढ़ होय तिष्ठना, शयन करना, बैठना। इतनी मर्यादा में रोसे रहना । ऐसे मर्यादा करि, फेरि ताके काल-क्षेत्र का उल्लंधि के क्रिया करनी, सो आसन-शयन अतिचार है । जेते क्षेत्र में काल की मर्यादा करी। तामें तिष्टया ही और के पास संज्ञा, उपदेश देय कार्य करावना, सो पर-प्रेक्षण अतिचार है। २। आप अपनी सीमा-मर्यादा में बैठा ही और कों बुलाय कार्य करावै तथा अन्य कं दूर बैठे तें बतावै तथा अन्य कोई कार्यवार ने आय कही कि फलाने जी कहां हैं ? तब अपने स्थान में तिष्टया हो, खखार करि तथा खाँ सि कर, अपना अस्तित्व बतावै, जो हम यहां हैं ताका नाम शब्द दोष है । ३ ! आप तो अपने स्थान में तिष्ठै है और कोई प्रयोजनहारा आवै। अरु कहै, फलाना कहां है? तब वाका शब्द सुनि प्रयोजनी जान, गोखते, खिड़की से अपना मुख काढ़ि ताकी बतावै। ताकों संज्ञा करि, कार्य सिद्ध करै, सो रूप नाम अतिचार है। 8 । अपने परिमाण क्षेत्र में तिष्ठता कोई कार्य काहू ते जानि वातै बोल्या तो नाहीं परन्तु कंकर वस्त्रादि पुदगल-स्कन्ध डार अपना कार्य सिद्ध करना सो पुद्गल-क्षेप नाम दोष है। ५। ऐसे पांच अतिचार नाही लागैं, सो शुद्ध देशवत है । इति देशव्रत । २ । प्रागै अनर्थदण्ड त्याग व्रत का कथन करिये हैं-तहां बिना प्रयोजन पाप कार्य करना, | सो अनर्थदण्ड है। ताके पांच भेद हैं। प्रथम-पापोपदेश, हिंसा का उपकरण राखना ( हिंसा-दान)। अपध्यान, दुःश्रुति और प्रमाद-चर्या । इनका अर्थ-जहां पाप का उपदेश, पर कौ देना । जो आओ, बैठो। कहा करो हो? चौपड़, सतरज, गंजफा, मूठ आदि इत खेलो। ज्यों दिन कटै। ऐसा उपदेश देना, सो ४१५.
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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