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________________ " प्रमाण मनुष्य से किया। अरु पीछे राजा के कर के भय से चुराय, ताके ऊपर बड़ा भार धरना यथा नफा के लोभ ते पर-जीवन पै मर्यादाकौं उल्लंघि, मार का धरना, सो अति भारारोपण दोष है । ५। ऐसे कहे जो पांच अतिचार बचावै, तो परिग्रह प्रमाण का व्रत, शुद्ध होय है ! इति पांच अणुव्रत के, पच्चीस अतिचार कथन। आगे तीन गुराव्रत के नाम व अतिचार कहिये है। प्रथम नाम-दिग्वत, देशव्रत और अनर्थदण्ड त्याग व्रत। इनका अर्थ-तहां पूर्व दिशा, पश्चिम दिशा, उत्तर दिशा, दक्षिण दिशा जोर पूर्व-दक्षिण के बीचि जाग्नेय कोण विदिशा है और दक्षिण-पश्चिम के बीच में नैऋत्य विदिशा है। पश्चिम-उत्तर के बीचि में वायव्य कोण है। उत्तर-पूर्व के बीचि में ईशान कोण है। ये च्यारि विदिशा हैं तथा ऊर्व दिशा और अधो दिशा। ऐसो इन दशों दिशाओं का परिमाण करना तथा दिशा-विदिशा विर्षे रोसी प्रतिज्ञा करनी। जो फलानी दिशा-विदिशाक, फलानी नदी ताई तथा फलाने पर्वत ताईं. फलाने देश ताई, फलाने नगर ताई, एती मर्यादा में कर्म-कार्य करूँगा । एती ही दूर ताई, पत्र लिखूगा। रातो ही दूर का पत्र आय तो बाचूंगा। रोती ही मर्यादा में वस्तु भेजूंगा। रोती ही मर्यादा तें मँगाऊँगा। इस मर्यादा को उल्लंघकै पत्र नहीं लिवंगा और उर्व दिशा में एते ऊँचे पर्वत ताई चढूगा और अधो दिशा में राती नीची धरा ताई पाताल में नदी-कुएँ में जाऊँगा। ऐसे दी दिशा का प्रमाण करें। सो दिव्रत है। थाके पांच अतिचार सो हो कहिये हैं। अधोतिक्रम, ऊर्ध्व अतिक्रम, तिर्यग्गमन अतिक्रम, क्षेत्र परिमाण उल्लंघन और अन्तर स्मरण। अब इनका अर्थ-अपनी मर्यादा कं उल्लंधि के धरती, कूप, बावड़ी, नदी इत्यादिक पृथ्वी में उतरना। सो अधो दिशातिक्रम नाम अतिचार है। । और जहाँ पर्वत-शिखरन 4, अपनी मर्यादा उल्लंघ के चढ़ना, सो ऊर्ध्व दिशातिकम अतिचार है। २। मर्यादा उल्लंघि के, विदिशा में गमन करना सो तिर्यगमन अतिक्रम अतिचार है। ३. जिन क्षेत्रन मैं मर्यादा की थी सो तिसकौं उल्लंघि, अधिक क्षेत्र में कर्मकार्य करना, सो क्षेत्र उल्लंघन अतिचार है। ४ । और जहां दिशा में सीमा की थी। ताकू अन्तरङ्ग में भूल कर विचारना, जो मेरे कौन-सी दिशा की मर्यादा थी? ऐसे करि मर्यादा थी? ऐसे करि मर्यादा का भलना, सो अन्तर-स्मरण नाम दोष है। शरीसे अतिचार रहित दिग्वत का पालना, सो दिग्द्रत है।३। आगे दुसरा देशव्रत कहिये है। तहां आगे कह्या दिग्द्रत-परिमाण, ताही मैं घटाय के मर्यादा करना। जो पहिले दिग्द्रत किया, सौ ४९४
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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