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________________ कोई ऐसा ही अकृत्रिम अनादि-निधन स्वभाव है जो ये पराये मले कार्य को देख सकते नाहों। यायै कोई अनेक विनती करौ परन्तु यह पापो आत्मा पराई भलो वस्तु को दोष लगाये बिना रहता नाहीं। ऐसे कुबुद्धिनकी ३७ खुशी करनेक जो उपाय कीजिये, सो सर्व वृधा है। जैसे नीम के मिष्ट करनेक नाना मिष्ट रस, दुग्ध, घी ले नीम की जड़ में दीर्घ काल तांई सीचिये तो मी नीम का रस मिष्ट होता नाहीं। जैती भली वस्तु मिष्ट-रस-धारी नोम को जड़ में डारिये सो सर्व वृथा होय जाय। तैसे ही दुष्ट कं खुशी करनेकों जेते उपाय करिये, सो-सो सर्व वृथा जोय हैं। तातें है मासजो वर होली कनियेत. इलाज भी की। और जो वस्तु होती नहीं जानिये तौ ताऐं इलाज काहे का ? तातें सज्जन हैं ते सरलस्वभावी हैं। तातें विनती करी। अर जे दुष्ट हैं तिनतै विनती करी तौ क्या, वह भला वस्तुको दोष लगावै ही। जे दुष्ट हैं तिनकें तो यही मुख्य है जो पराई निन्दा हाँ सि को करि, परिकों पीड़ा उपजाय, आप सूख मानना। तातें ऐसे जानि सज्जन जननते विनती करो, जो यह सजन मल-चूक होयगी सो शुद्ध करेंगे। अरु पराये अवगुणकों हेरनेहारोंत समभाव करि इस ग्रन्थ के करने का उपाय करौं हों। ताके आदि ही षटकार्य आचार्यनि की परिपाटी त चले आये हैं। जे आचार्य तथा और ग्रन्थन के कर्ता कवीश्वर भये ते षट्कार्य ग्रन्थारभ के आदि ही वर्णन करते आये हैं। सो हो परम्पराय लेय इस ग्रन्थ की मादि इहाँ भी लिखिये हैं। गाथा-मंगल णिमित्त हेऊ, जोए पमाण णाम कत्ताए । सूरो ग्रन्धारम्भय, ए षड काजोय धम्म सुत्तादो ॥१०॥ मंगल, निमित्त, हेतु. प्रमाण, नाम, कर्ता, यह षट् हैं। सो जे जाचार्य ग्रन्थारम्भ करें तब आदि में इनका स्वरूप वर्णन करें। सो अब इनका स्वरूप लिखिये है। प्रथम ही मंगल कहैं सो पुण्य, पवित्र, शुभ, क्षेम, कल्याण, सुख, साता इत्यादिक र सर्व मंगल के नाम हैं। मंगल के षट्भेद हैं सो ही कहिये हैं। गाथा-णाम सथापण दब्बो, खेत्तो कालोय भाव षड् भेदो। मंगल पुणदय भावो, ग्रन्थारम्भेय सध्य करई ॥११॥ नाममंगल, स्थापनामंगल, द्रव्यमंगल, क्षेत्रमंगल, कालमंगल,भावमंगल-ये षट् प्रकार मंगल हैं। सो इनका विशेष कहैं हैं। तहाँ नवीन ग्रन्थ के आरम्भ में प्रथम ही मंगल करिये। सो पाप का नाश सोही मंगल है। सो पंच परमेष्ठी के नाम तथा वृषभादि अनेक तीर्थङ्करन का नाम तथा गणधर देवादि महान पुरुष तथा चरमशरीरी ३७
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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