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________________ . ... ३७ .. करना सा भव-भव में सुखकारी है। आगे पुनि हिंसा निषेधगाथा-जम उर करुणा धारय, काको मुह सौच मित्य तण जीरो । दुट जण पर मुह इच्छय, तव हिंसा फल होय पुण आदा ॥१२॥ अर्थ-जम उर करुणा धारय कहिये, काल के हृदय करुणा होय। काको मुह सौच कहिये, काक का मुख पवित्र होय । मित्य तण जीवो कहिये, मृतक जोवे । दुइ जण पर सुह इच्छय कहिये, दुष्ट पुरुष पर के सुख कौं वच्छेि । तव हिंसा फल पुरण आदा कहिये, हे आत्मा! तो हिंसा के करने में पुण्य होय। भावार्थ-यम जो काल, सो जड़ दया रहित है । सो काल कौं दया आव. संसारी जीव नहीं मारै, तो हिंसा में पुण्य फल होय और काक का मुख तौ सदा अपवित्र ही है। सो कदाचित् काक का मुख शौच रूप होय, तो हिंसा मैं पुण्य फल होय और आयु कर्म पूरण होय जे आत्मा पर्याय तज मरा, सो कबहूँ जीवता नाहीं। सो मृतक जीवे तो हिंसा में पुरय होय और जे दुष्ट स्वभावी, पर दुःख रअन, पर कौं सुखी देख महादुःखी होय। सो ऐसा क्रूर स्वभावी दुर्जन प्राणी, पर-जीव कौ साता देख सुखी होय, तो हिंसा में पुण्य होय । ऐसे ऊपर कहे कारण सो कबहूँ नहीं होय, सो ये होय तो जीव घात में धर्म होय । तातें धर्म लोभी के धर्म के निमित्त, दया-भाव करना योग्य है। आगे बहुरि हिंसा का निषेध करिये हैगाथा-विस पय जोवय जीवो, जागो गमणाय सरल तण होई स्वाण पुच्छ सुष होण्य, तव हिंसा फल होय पुण माथा ॥१२६॥ अर्थ-विस पय जीवय जीवो कहिये, जहर स्वाय के जीव जीवै। गागो गमणाय सरल तण होई कहिये, सर्व सीधा होय चालै । स्वाण पुच्छ सुध होवय कहिये, कुत्ते को पंच सीधी होय । तब हिंसा फल होय पुरा बादा कहिये, हे आत्मा! तो हिंसा में घुण्य होय । भावार्थ- हलाहल जहर खाय कोई जीवता नाहीं। ऐसा विकट विष खाये जोवै, तो हिंसा में धर्म-फल होय और काल नाग, सहज हो वक्र चाल चाल । सो कबहूँ सांप सूधा होय गमन करे, तो हिंसा में शुभ फल होगा और श्वान की पंछ का सहज स्वभाव ही वक्र है । सो कदाचित इवान की पंछ सुधी होय, तौ हिंसा में धर्म होय। ऐसे ऊपर कहे नहीं होने योग्य पदार्थ होय, तौ हिंसा में धर्म होय ताते हिंसा तजि, दया का पथ समझने में अपनी रक्षा जाननी। आगे और भी ऐसा कहैं हैं जो जीव-घात में पुण्य नाहींगाया-रज पीलय ह पाबई, रजनी रवि बिहोंति पभ पाये | काय धरी मह खपई, तब हिंसा सुइ देय माए ॥१२७॥ ४३७
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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