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________________ ऐसा जानि, जीव घात तजि, दया सहित रहना योग्य है। आगे और भी हिंसा का निषेध बतावै हैंगाथा-परिछम रवि सिल तरई, भू पलटय वण सीत तग धरऊ । मेर चलय अन्ध देखय, तथ हिंसा देय पुण आदा ॥१२३॥ अर्थ-एच्छिम रवि कहिये, सूर्य पश्चिम दिशा से उदय होय। सिल तरई कहिये, शिला तैरे। म पलटय कहिये, पृथ्वी उलट-पलट होय। वहण सोत तण धरऊ कहिये, अग्नि शीतल तन धरै। मेर चलय कहिये, मेरु चलै । अन्ध देखय कहिये, नेत्र रहित देखें। तव हिंसा फल देय पुण आदा कहिये, आत्मा तो हिंसा का फल पुण्य होय। भावार्थ-पश्चिम दिशा में सूर कबहुं नाही ऊगे। तैसे ही हिंसा में धर्म का फल कबहूं नहीं होय और पाषाण की शिला जल वि तैरे, तो हिंसा में धर्म होय और पृथ्वी पल्टै तौ हिंसा में धर्म होय। सो शिला जल में कबहूँ तरतो नाहीं और पृथ्वी कबहूँ पलटती नाहीं अनादि ध्रुव है। तैसे ही हिंसा में पुण्य फल नाहीं और अग्नि शीत अङ्ग धरै तौ हिंसा में धर्म फल होय और सुमेरु पर्वत अनादि अचल है सो ये मेरु हालै तो हिंसा में धर्म फल होय और जन्म के अन्धे को कछु नहीं दीखें । तैसे ही जीव घात में पुण्य का फल कबहूँ नहीं होय। रोसे ये कहे नहीं योग्य स्थान तैसे ही हिंसा वि धर्म कदाचित नाहीं। ऐसा जानि हिंसा धर्म तजि दया सहित धर्म का अङ्गीकार करना योग्य है। आगे पुनि हिंसा निषेधगाथा-पंग चढ़य गिरि सिहरे, वधरो रंजाय राग सुह पाई। कातर रण जय पावय, तब हिंसा फल होय पुण आदा ॥१२४॥ अर्थ—पंग चढ़य गिरि सिहरे कहिये, पैर रहित पुरुष पर्वत के शीश पर चढ़े। वधरी राय राग सह पाई कहिये, बहरा राग के सुखको पादे । कातर रण जय पावय कहिये, कायर युद्ध में विजय पावै । तब हिंसा फल होय पुरा आदा कहिये, हे आत्मन् ! तो हिंसा में पुण्य फल होय। भावार्थ-पांव रहित पुरुष कों पर के सहाय विना अल्प भी नहीं चल्या जाय। सो रोसा पंगल पुरुष उत्तुंग पहाड़ के शिखर पर भागि के चढ़े तो जोव घात में पुण्य होय और बहरा पुरुष कान तैं कछु सुनता नाहीं। सो बहरा पुरुष राग के सुन्दर शब्द सुनि राजी होय तौ हिंसा में पुण्य होय और जे कायर नर होंय सो युद्ध से डरें। सो कायर पुरुष वैरी की सेना मगाय जोति पावै तौ हिंसा विर्षे धर्म का लाभ पावें और ऊपर कहे जे कारण सो कदाचित नहीं होय! सो होय तो । हिंसा में धर्म फल होय। तात हे धर्म फल के लोभी सर्व जीव ! आप समान जानि सबकी रक्षा के निमित उपाय
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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