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________________ जीवन कौ मन्त्र-मन्त्र करि खपत कर होय तथा अनेक जड़ी-बूटो खुवाय के, जीवन • खपत करें होंय तथा केई जीव पाप के उदय तें खपत होय गये, तिनकी हाँ सि करी होय तथा केई खपत को महान चेष्टा देख, श्री । तिनकी चोरी आदि मठा दोष लगाया होय तथा कोई हौल दिल कू स्वच्छन्द प्रवृत्तता देख, ताकौ मारचा होय सु । तथा मदिरादि अमल पीय, अपनी अज्ञान चेष्टा करि, सुख मान्या होय तथा कोई मदिरा पोवनेहारा, तिनकी अज्ञान चेष्टा देख, आप सुख मान्या होय इत्यादिक पाप चेष्टा ते जीव भवान्तर में सपत होय है। १२ । बहुरि शिष्य पछी । हे गुरो! यह जीव कुशीलवान किस पाप ते होय ? तब गुरु कही-जानैं पर-भव में वैश्या का रंग बहुत किया होय तथा वेश्या, नृत्यकारिणी तथा कुशील स्त्री, नपुंसक पुरुषाकार तिनके संग बहुत अज्ञान चेष्टा देख तथा उन समान आप कुवेट कारि, हर्ष मान्या सोय. तिन मैं गोष्ठी कर, रम्या होय और जीवन कौ कुशील करते देख, अनुमोदना करी होय तथा श्वानादिक पशु पर्याय में कुशील रूप वरत्या होय तथा औरन के बीच में द्रुत होय, कुशील मैं सहायता दी होय तथा दिन विबै कुशील के वीर्य का उपण्या होय इत्यादिक पाप भाव ते कुशील हो होय ।।२३। बहुरि शिष्य पूछो। हे नाथ ! ये जीव शीलवान् किस पुण्य कम ते होय ? तब गुरु कहीजानै पर-मव में शीलवान पुरुष-स्त्री जीवन की प्रशंसा करी होय तथा शीलवान् पुरुष के झोल राखवेकौं सहाय करी होय । पूर्व संयमी पुरुषन की संगति करी होय तथा कुशीलन की संगति ते मन उदास रहा होय इत्यादिक शुभ भावन तें शीलवान होय । १२४। बहुरि शिष्य पूछी। हे गुरो! यह जीव जनमते हो मरण को प्राप्त किस पाप तें होय ? तब गुरु कहो-जाने औरन को जनमते ही मारे होंय तथा अल्प वायु के धारी जनमते हो मरते देख, हर्ष पाया होय तथा द्वेष-भाव से कोई कौं जनमते देख, हस्त ते मारचा होय तथा सम्मन्छन एकेन्द्रियादि त्रस जीवन के घात के उपाय करि तिनकी हिंसा करी होय इत्यादिक पाप भावन ते जन्म समय ही आप मरण पाd 1991 बहरि शिष्य पछी। हे गरो। यह जीव बन्दी होय, पर वश पर के किये दुःख को सहै। सो किस पाप का फल है ? सो कहो। तब गुरु कही-जिनमें बिना अपराध धन के लोभ कौ पर-जीव जोरावरी पकड़ि के बन्दीगृहमें राखे होंय तथा पर-भवमै दुपद, चौपद,नभचर, जलचर, उरपद इत्यादिक पशूनको बलात्कार,पोजराफन्दा आदि बन्धन मैं रासे होंय तथा पर-जीवन कौं देष-भाव करि, चुगली खाय, पराये मान खण्डन को धन
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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