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________________ परभव में आप सिंह, सुजर, श्वान, सर्प, भीलादि को पर्याय धारि, पर जीव अनेक पीड़े होंय तथा समता। भाव के धारो धर्मात्मा तिनकौं देखि, तिनके समभावना को निन्दा करी होय । शान्त परिणाम जीवन की हाँसि करी होय। इत्यादिक पापन ते महाक्रोधी होय । ३७ । बहुरि शिष्य प्रश्न किया। हे गुरो! यह || |४०९ जीव आप तो मान चाहै, अरु मान नहीं रहै । सो ये किस पाप का फल है, सो कहौ। तब गुरु कहो है भव्यात्मा! जिन जीवन नैं पर जीवन का मान नहीं रास्ता होय तथा अपने तन, धन, यौवन, राज, हुकुम, ष्टि |बल इत्यादिक के गर्व करि, अन्य जीवन का अनादर किया होय तथा आप कौ भला मनुष्य जानि और जीवन में शीश नमाये, सो तिनको शीश नमाते देखि, अपने मान-भाव ते परकौं तुच्छ जानि, पोछा शीश नहीं नमाया होय तथा गुरुजन की आज्ञा से प्रतिकूल होय स्वच्छन्द वर्त, बड़ेन को आज्ञा खण्डी होय तथा दीन जीवन को जोरावरी भय देय, अपने पायन नमाये होय । तिनके मान खण्ड किये होंय तथा कहीं किसी का मान खण्ड भया सुनि, आप सुख पाया होय इत्यादिक क्रूर भावन तैं अपमानी होय, मान चाहै अरु ना रहे। ३८। बहुरि शिष्य ने प्रश्न किया। भो दयासागर! यह जीव अपना मान नहीं कराया चाहै, अरु बिना चाह हो और जीव आय-आय मस्तक नमा, आज्ञा माने सेवा करें। सो रोसी महिमा कौन पुण्य ते होय? सी कहो। तब गुरु कही-हे भव्य, सुनि। जिन जीवन नैं परभव विष, महा भक्ति करि शुभ मावन तें देव-धर्म-गुरु की सेवा-पूजा, विनय सहित मस्तक नमाय करी होय । ताके फल तैं ताकी सेवा देव करें, ऐसा इन्द्र होय तथा मनुष्यन का इन्द्र चक्री होय, तथा अर्ध चक्री होय तथा अनेक राजान करि बन्दनीय महामण्डलेश्वर राजा होय । इत्यादिक पदके धारी पृथ्वीपति होय। तिनको बड़े-बड़े महंत राजा स्वयमेव हो भक्ति सहित शीश नमावें हैं तथा जिन जीवन नैं पर-भव में गुरु-जन जो माता-पिता तिनको सेवा करवे कौ बारम्बार शीश नमाय विनय ते चाकरी करि होय। ताके पुण्य ते सर्व कुटुम्ब के बाझाकारी रहैं सर्व में आदर पावै तथा जिसने पर-भव में अन्य जन, अपनी वय तें बड़े पुरुष तिनका विनय करि मान रास साता उपजाई होय, आदर किया होय । सो जीव बड़े-बड़े वयके धारी पुरुषन के धंदने-सराहने योग्य हैं। आप तें बड़ी-बड़ी उमर करि सहित जीव आय-आय शीश नमा, मान राखें, ऐसा होय तथा जो विवेकी, ।। ५२
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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