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________________ । प्रात-रौद्र के विकल्पन करि भरया है हदय जाका। ताक चोर-ज्वारीन का तौ आदर आप जैसे पापी, पाखण्डी, सप्तव्यसनी, चोरन के सहाई, तिनका आदर करे और महालोभी पर-स्त्री इच्छुक धन के लोभ की व पर-स्त्री ३९७ वश करने की अनेक मन्त्र-तन्त्रन का साधन कर,तप करै, जप करै, सो महाआदर सू करे। अरु कल्याणकारी धर्म क्रिया आदर बिना करें। ऐसी परिणति का धारी, अशुभ-कर्म का आस्रव करें। याका नाम जनादर क्रिया है 1२० आगे प्रारम्भ क्रिया कहिये है। तहां अपनी शक्ति तौ आराम करने की नाहीं। तब और केकिये पापारम्भ तिनकों देख हर्ष करना । जैसे-किसी के किये मन्दिर, गढ़, कोट, कूप, बावड़ी, सरोवर बनते देखि महाजारम्भ देख आप अनुमोदना करनी तथा पर के व्याह में बड़ा आरम्भ देखि प्रशंसा करनी इत्यादिक भावन” अशुभ-कर्म का आस्रव करे है ।याका नाम आरम्भ क्रिया है।२। आगे परग्राहणी क्रिया कहिये है। तहां जै जीव लोभ के मरे योग्य-अयोग्य नहीं गिनैं। ये लेने योग्य है, ये नहीं लेने योग्य है। ऐसा भेद तीन लोम के उदय नहीं विचारै। परवस्तु अपने हाथ आवै सो सब लेय। देव-धर्म का माल जो धर्म निमित्त का सौर भगनी, पुत्री का, भानजे का इत्यादिक ये लौकिक निन्द्य पर द्रव्य है। सो जो महालोभ सहित जीव होय है सो लोभी धर्म-अर्थ का भी द्रव्य विषय में लगावै । बहिन-भानजे का धन लेय इत्यादिक लोभी के हाथ आवै सो त नाहीं। ऐसे पर माल ग्रहण खूप भावन का धारी अशुम-कर्म का आस्रव करे। याका नाम पर-ग्राहणी क्रिया है। २२। आगे माया नाम क्रिया कहिये है। तहां जे जीव पर-जीवनको ठगनेकौं महाचतुर अनेक थुक्ति देय अनेक विद्याकर पराया धन हरैं। अनेक कलान करि अपने विषय-कषाय पोषण करें इत्यादि पाप-कार्यन मैं तो प्रवीस होय हैं और जे जिन माषित शुद्ध-धर्म की क्रिया तिनमैं मूरख समानि भोला जिन-पूजा नहीं जाने जो कैसे करें व कैसे पढ़ें हैं। भगवान् की स्तुति नहीं करि जानें। प्रभु का दर्शन नहीं करि जानें । जिनकी दया महापुण्यकारी होय ऐसे षट्- || जीव तिनके नाम-भेद नहीं जानें । संसार भ्रमण के जो स्थान च्यारि गति ताका स्वरूप नहीं जानें। आप जीव है सो मापक जीवत्व भाव नहीं जाने। इत्यादिक कल्याणकारी धर्म सम्बन्धी बात क्रिया नहीं जाने। ऐसे भाव का धारी जो पाप मैं चतुर धर्म में मूढ़ सो पाप पासव करि पर-भव बिगाई है। याका नाम तेईसवीं माथा क्रिया है।२३। आगे मिथ्यादर्शन क्रिया कहिये है। जो जीव प्राप मिथ्यात्व रूप क्रिया करै। औरन• उपदेश देय।
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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