SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तें नहीं बने। ऐसी काय का धारी महापाप का आसव करै। यह ऐसा पापी है कि यदि याके कहै कोऊ पाप कार्य न करै तथा कोई करता पाप कार्य से डरै। तो यह निर्दयी ऐसा प्रेरक होय कहै। जो हे भाई। यो पाप हमारे शिर है। तू मत डरै। ये पाप का कार्य निःशङ्क होय करि। ऐसे भाव का धारो बड़े पाप का जासव करें। याका नाम स्वहस्त क्रिया है। १६ । आगे निसर्ग क्रिया कहिये है। तहां जो दुरात्मा को भला कार्य तौ सिखाये ही नहां आवै। शुभ कार्यन विर्षे मूढ़ता, भली बात बोलना न आवै और अनेक कुकार्य, बिना सिखाये ही अपनी बुद्धि तैं उपावै। अनेक युक्ति, पाप-कार्य करने की उपजै। आप करै, औरन कू कुकार्य उपदेशै । ऐसे जीव अपने भाव ते पाप-कम का आसव कर। याका नाम निसर्ग क्रिया है। १७। भागे विदारण क्रिया कहिये है। तहां जो जीव अपना अवगुण लोकन मैं बाप प्रगट कहै। जो मैं बड़ा चोर हूं। मो-सा और नाहीं। अनेक संकट में, महागढ़ स्थान में, धन धरचा होय, तहां तें ल्याऊँ तथा कहै, जो मो-सा ज्वारी और नाहों तथा कहै, हम परस्त्री सेवनहारे हैं तथा कहै, मैं बड़ा पाखण्डो हूँ मो-सा पाखण्डी और नाहीं। बड़ा झूठा हों तथा मैं बड़ा दगाबाज हों इत्यादिक अपने अवगुण को प्रशंसा, अपने मुख से करें। ऐसा जीव अपने भावन को वक्रता करि, अशुभ-कर्म का आसव करै । सो याका नाम, विदारण क्रिया है। १८। आगे जिन-आज्ञा उल्लंघन क्रिया कहिये है। जो विषय-कषायन में उद्यमी, पंचेन्द्रिय पोषवे क अनेक उद्यम करै। कदाचित् तन की शक्ति नहीं भई होय, तो बुद्धि बल करि मन त बड़ा उपाय करें। परन्तु जैसे बने तैसे, विषय पोषण करि, सुख माने । जिनके सेवन पुत्र वध, न होता जानें, ऐसे कुदेव तथा जिनतें रसायन होतो जाने तथा वैद्यादिक कला के धारी, जन्त्र-मन्त्रादि चमत्कार बतावनहार-गुरु, इनकी सेवा में सावधान । तिनकी आज्ञा प्रमाण तौ करें। जिन भाषित धर्म-सेवन में शिथिल. स्वर्ग-मोक्षदाता तप, व्रत, पूजा करने में प्रमादी। कायर ऐसा कहै, जो मेरे तन में शक्ति नाहीं। अशक्ति जानि, आलस सहित, शुद्ध धर्म की क्रिया करै। सो भी अपनी इच्छा रूप करे जिन-आज्ञा प्रमाण नाहीं करै । ऐसे भावन का धारी अशुभ आसव करै। याका नाम जिन-आज्ञा उल्लंघन क्रिया है । १६ । आगे बीसवों अनादर क्रिया कहिये है । जो जोव शास्त्रोक्त तप, संघम, पूजा, दान, चारित्र, ध्यान पाठादि धर्म क्रिया करै सो सर्व अनादर सहित करें। यह अभागी धर्म-भावना रहित पापाचारी
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy