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________________ संयम, व्रत आखड़ी को धारतें तप के फल का वांच्छक होय । तपस्वी नाम बाजै। पोछ काल पाय तप कष्ट । । ते भय स्वाय जल की इच्छा, अन्न की इच्छा, स्त्री को इच्छा । शीत-उष्ण नहीं सह्या जाय सो और असंयमी | जीवकों खावते-पीवते, स्त्री संग करते, शोत-उष्ण में अनेक तन के जतन करते सुखी देखि. विचारी। जो मैं तो संचम तम्त हास्यानो और अधमी सी है, अच्छा खाय है-पीवै है। ऐसे भाव करि आप | संयमी होय कर, पीछे प्रमाद योग ते याप उदय करि, असंयम कं मला जान, संयम ते विचल्या चाहै । सो प्रमादिनी नाम की क्रिया है। ऐसे भाव ते अशुभ-कर्म का आस्रव होय है।४। आगे ईर्यापथ क्रिया कहिये है। सो याकरि दोय भेद आस्रव होय है। जो जीव अन्तरङ्ग में सर्व जोव चै दया-भाव करि, गमन करते नोचो दृष्टि करि देखता चाले । धीरा चाले । छोटा-बड़ा जीव नजर में आवे, सो राह में बचाय लेय, ऐसे दयाभाव सहित जतन ते भमि शोधता गमन करें, तो चलता जीव के ही पुण्य का आसव होय और गमन करते, ईर्या तजि, प्रमाद ते उतावला चालै । राह में आप समान आत्मा अनेक, छोटी कायधारी, पशु चींटा-चौंटी हैं तिनकी रक्षा रहित, प्रमादतें गमन करता आत्मा, अशुभ-कर्म का आस्रव करें। याका नाम पञ्चम भेद ईयर्थ्यापथ क्रिया है। ५। आगे प्रादोषि को क्रिया कहिये है-जहां ये जीव धर्म भाव तजि क्रोध के वशीभूत होय, अनेक पाप करें। जाकौं क्रोध का उदय होय तब जीव घात करी दश तजै। क्रोधी जीव देव, गुरु, माता आदि गुरुजन का अविनय करै। शस्त्र घात तें, आप तन हत। क्रोधी अग्नि ते ग्राम, वन, घर जाले। क्रोधी नर, पुत्र, स्त्री, भाई आदि का घात करें। इत्यादिक पाप, क्रोध भाव से करै। तहां क्रोधी भी अशुभ-कर्मन का आसव करै है। याका नाम प्रादौषि की क्रिया है। ६ । अब कायिक क्रिया कहिये है-तहाँ जाने शरीर पाय, चौरी करी। जीव घात किया । पर-स्त्री सेवन किया । मद्य-मांस भक्षण किया। अपने कुल निन्द्य, अपने धर्म निन्द्य, खान-पान निन्द्य किया करि । द्यूत रम्या । युद्ध किया । पर-जीवन कं भय उपजाये। इत्यादिक ता शरीर से बहुत अपराध किये। ताके फल से शरीर की नाक छेदन कराई, पाव छेदन कराये इत्यादिक अङ्ग-उपाङ्ग छेदन सहित रहै। तो भी पर-घात का तौ उद्यम किया करै। ऐसे बहुत पाप-अकार्य करि, भाव बिगाड़ि, अशुभ-कर्म का पासव किया और शुभ-कर्म तौ शरीर कौं धारि, काबहूं नहीं करचा, अपराध किये। सो सातमी कायिक क्रिया है । ७। आगे
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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