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पृष्ठ ग्यारहमा पर्य १६-१७ अठारहयो पर्व
२३१-२६ कुधर्म-सुधर्म और नव नय-सत्य-धर्म, पस प्रमाण करि अखण्ड
मोक्ष मेहय-शेय-उपादेय बारहवां पर्व
१८०-१६५ लमीसा पर्य
२४०-२५८ किस प्रकार की संगति करना-विचार मैं शब-उपादेय और
ज्ञान में ध्य-झंथ-उपादेय-कुलमो के सोन भेद तथा विश्वासघाती ध्यान का स्वरूप-क्रिया में शेय-हय-उपादेय-गर्भ में शुमाशुभ
का एण्टाम्त-चार गति के जीवन की आगति-जामतिबालक के चिह्न-क्रिया-अक्रिया कथन-उसम श्रावक के धर्म
निमित्त-उपादान कारण और शुम वाणिज्य-जघन्य मध्यम कर्म भूषण
उत्कृष्ट ऋतज्ञान सेरहवां पर्व
२६-२६६ १४-२१६
अवधिशान मनः पर्ययज्ञान और केवलज्ञान खान-पान में शेय-हेय-उपादेय-वचन मैं शेय-हेय-उपादेयद्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव मैं य-हेय-उपादेय - पद काय के जीवनि
इकीसवी पर्व
२६६-१८२ का शरीर-निगोद के पश्च स्थान-तप में शेय-हेय-उपादेय।
मनुष्य अपनी आयु तथा खोदे है-अपनी भूलकर खुद बन्ध्या है -
शमात्मा को एते दोष नाही-धर्म के प्रसाद तै, अचेतन आकाश धौवइया पर्व
२१७-२२८ भी भक्ति करे, तो इन्द्र-चक्री आदि चेतन द्रव्य भक्ति करे, तो क्या प्रत विर्षे ज्ञेय हेय-उपादेय- दान विर्षे झंय हेय-उपादेय
आश्मर्य-पुण्याधिकारी पुरुषों के भी इन्द्रिय-सुस्थ नाशवान है. पात्र में शय-हेय-उपादेय-पूजा में शेय-हेय-उपादेय
माता-पितादि सर्व स्वारश्च के बन्धन ते बंधे हैं जिसका सा
स्वभाव, वह नहीं मिटता-जिन आशा रहित पण्डित के मुख ते पन्द्रहवा पर्व
२२१-२१२ शास्त्र न सुनना-ऋर जीव, सर्प से भी विशेष दुष्ट हैतीर्थ में शय-हेय-उपादेय
सजन-दुर्जन स्वभाव सोलहवा पर्व २३३ . पाईसवा पर्व
२८३-३०१ परस्पर चर्चा में हत्य-शेय-उपादेय
मुर्स को धनोपदेश कार्यकारी नाही-एसे किसन (व्यापार ) या
रहित है-पण का धन वह नहीं भोगे है, ऐते जीव दया रहित हैसत्रहवा पर्य
२३४-२३५ सन्तोषी आत्मा निधन होने पर. ऐसी भावना मावे-धर्मार्थों अनुमोदना में हेय-शेय-उपादेय
जीवों की इच्छा, चार प्रकार-कवीश्वरों का अभिप्राय