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________________ | आगे दत्ति भेद च्यारि कहिये है। तहाँ नाम-पानदत्ति।समदत्ति।२। करुणादत्ति ।३। सर्वदत्ति । अब इनका अर्थ-तहां मुनिराज कों नवधा भक्ति करि दान देना तथा आर्थिका जी कू भोजन-वस्त्र भक्ति सहित दान देना तथा त्यागी, अलि खलिक, प्रतिमाधारी, तिन को भोजन-वस्त्र देना तथा संघ में मुनि-श्रावकन को । कमण्डलु-पोछो देना। इत्यादिक वारि प्रकार संघ में महाविनय सहित भक्ति-भाव करि दान देना, सो पात्रवृत्ति है। । और आप समानि धर्म श्रद्धा का धारक गृहस्थ, धर्मात्मा, ज्ञानी, वैराग्यवान, सन्तोषी, सम्यग्दृष्टि, शुद्ध देव-गुरु-धर्म को श्रद्धा को समझनेहारा, उत्तम शुभ कर्मों, ताकी यथायोग्य भक्ति-अनुराग करि, विनयपूर्वक भोजन-वस्त्रादि देना । तिन की स्थिरता करनी, साता करनी, सो समदत्ति है। प्रयोजन पाय इनकौं दान दीजिये तथा उनका आप लीजिये। तातें इनका लेना-देना सो समदत्ति है। २। जहाँ दीन, दरिद्री, अन्धा, मुखा बालक, वृद्ध, अशक्त, रोगी, असहाय इत्यादिक कौं देखि अनुकम्पा करि, दया-भाव सहित दान का देना, सो करुणादत्ति है।३। जहाँ सर्व परिग्रह-आरम्भ का त्याग करि मुनीश्वर का पद धरना, सो सर्वदत्ति है। जब कछु दैन का नाम नहीं, जो देना था सो सर्व दिया। सर्व संसार में तिष्ठते जो-जो त्रस-स्थावर जीव, तिन सबमैं समता-भाव करि, सबकी अभय-दान देना, संसदात जालना रोसे दत्ति चारि। इति दत्ति। आगे कुलकर तें लगाय भरत चक्रवर्ती पर्यन्त जीवन में, चूक भये दण्ड होय। ताके भेद च्यारि हैं। सो बताइये हैं-तहाँ तीजे काल के व्यतीत भये, पल्य का अष्टम भाग काल, बाकी रह्या। तब झान का सामान्यविशेष भया। कोई जीव विशेष ज्ञानी, कोई जीव सामान्य ज्ञानो। ताके योग तें कुलकर भये। सो और जीवन में ज्ञान अल्प और कुलकरन में ज्ञान विशेष भया। सो प्रथम कुलकर तें लगाय पञ्चम कुलकर पर्यन्त कोई चूक भये, जीव कौं रौसा दण्ड होय जो "हा"। याका अर्थ यो, जो "हाय-हाय ! (यह कार्य मति करौ)"श ऐसे ही पञ्चम ते लगाय दशवें पर्यन्त ऐसा दण्ड जो "हा मायाका अर्थ यह, जो "हाय-हाय ! यह कार्य मति करो" और वृषभ देव पर्यन्त पञ्चम कुलकरों के वारे ऐसा दण्ड भया, जो "हा मा धिक। याका जर्थ-"हाय-हाय ! यह कार्य मति करौ तौ को धिक्कार है"।३1 पीछे काल-दोष तें जीवन के कषाय बढ़ी। तब राज-दण्ड मो दीरघ भया । सो चक भये भरत चक्रवर्ती के समय वारे जीव, वक्र-कषाई भये। अपराध बड़े करने लगे। सामान्य दण्ड
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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