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________________ स्थान ते उत्पत्ति होय जो शब्द रूप अक्षर, सो निवृत्ति अक्षर है। शशानावरणीय-कर्म के क्षयोपशम तैं मई जो पदार्थ जानने की भावन्द्रिय द्वारा अक्षर शक्ति, सो लब्धि अक्षर है। २। जो अपने-अपने देश भाषा रूप अक्षरन का आकार बनाय के, तिन ते कर्म-धर्म का कार्य करना.शास्त्र पढ़ना-समझना। इत्यादिक सो स्थापना अक्षर है। ३। ऐसे तोन भेद अक्षर जानना। इति। आगे पर्याप्ति के तीन भेद-पर्याप्ति।। अपर्याप्ति तिसका ही नाम निवृत्त्य पर्याप्ति । २। लब्धि अपर्याप्ति।३। इनका अर्थ-जहां पर्याप्ति नाम-कर्म के उदय सहित जीव पर्याप्ति पूर्ण करें, सो पर्याप्ति है। पर्याप्ति प्रकृति के उदय सहित जीव जेते काल शरीर पर्याप्ति पूर्ण नहीं किया होय, सो निवृत्यि पर्याप्ति जीव है।२। अपर्याप्ति के उदय सहित जोव शरीर पूर्ण करतें पहले मरण करे है, सो लब्धि अपर्याप्ति है।३। ऐसे तीन भेद पर्याप्ति के जानना। इति। आगे चक्षु-दर्शन के दोय भेद हैं। एक शक्ति-चक्षुदर्शन । एक व्यक्त-चक्षु-दर्शन।२। इनका सामान्य अर्ध-अपर्याप्ति प्रकृति के उदय सहित ऐसे लब्धि अपर्याप्त, चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रिय के शक्ति-चक्षु-दर्शन है। इनके चक्षु-दर्शन का क्षयोपशम तो है, परन्तु अपर्याप्ति-कर्म उदयतें. अपर्याप्त दशा में ही म हैं। तातै प्रगट नहीं होने पावै। तातै शक्ति-चक्षु-दर्शन कहिये । २ । पर्याप्त चौइन्द्रिय सो ये व्यक्त-चक्षु-दर्शनी हैं ।२। इति। आगे उपशम सम्यक्त्व के दोय मैद बताइये हैं-प्रथमोपशम सम्यक्त्व ।। द्वितीयोपशम सम्यक्त्व।। इनका सामान्य अर्थ-तहां अनादि काल संसार भ्रमण करते कबहूँ मिथ्यात्व छुटि सम्यक्त्व होय। आगे कबहूँ नहों भया था, अब हो अनन्तकाल में सम्यक्त्व भाव जिस जीवक होय, सो प्रथमोपशम सम्यक्त्व है। शश्रेणी चढ़ते अप्रमत्त गुणस्थान वि जयोपशम सम्यक्त्व नै उपशम सम्यक्त्व होय, सो द्वितीयोपशम सम्यक्त्व कहिये । २ । इति। प्रागे योग स्थान के तीन भेद बतावै हैं—प्रथम उत्पाद योग स्थान।। एकान्त वृद्धि योग स्थान । २ । परिणाम योग स्थान। ३। इनका सामान्य अर्थ-तहां जो उपजने के प्रथम समय में ही जो योग स्थान होय, सो उत्पाद योग स्थान है। याका जघन्य व उत्कृष्ट काल एक ही समय है। २। उपजने के द्वितीय समय ते लगाय, पर्याप्ति पूर्ण होने के एक समय घाटि पर्यंत एक-एक समय बढ़ाइये। ता” एकान्त वृद्धि योग स्थान हो है। याका मो जघन्य व उत्कृष्ट काल एक समय है। २. पर्याप्ति । तब से लगाय आधु पर्यन्त होय सो परिसाम योग स्थान है।३। यहाँ प्रश्न-जो परिणाम योग स्थान
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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