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________________ ३८५ संसार तै अनन्त काल ताईजीव मोक्ष हावा करत मी सिद्ध राशि अनन्त भव्य जोव जब पूछौ, तबही केवली बतावै। तातें सदैव मोक्ष जातें भी, जब कैवली क पूछिये तबही अमव्यन तै अनन्त गुणे भव्य, एक शरीर में जानना और कदाचित् मोक्ष जाते-जाते, भव्य राशि मोक्ष जा चुके, तो मोक्ष का पीछे अभाव होय । मोक्ष बन्द होय। सो मोक्ष-मार्ग कबहूँ बन्द होता नाही, शाश्वत है। छः महीना आठ समय में, छ: सौ आठ जीव, निरन्तर मोक्ष जांध । सो ये अनुक्रम कबहूँ बन्द होता नाहीं। सो ऐसा जानना कि जो अनन्ते जीव, भव्य-राशि में ऐसे हैं, सो कबहूँ मोक्ष होते नाहों। जब केवली सं पूछौ, तबही अभव्य राशि तें अनन्त गुरौ भव्य बतावै। तामें दूरानदुर भव्य राशि भी, अभव्यन तें अनन्त गुणी जानना। सो ये दुरानदर भव्य, अभव्य समानि हैं। इति । आगे तीन भेद जंगुल के कहिये हैं। सो प्रथम ही नाम-उच्छेद अंगुल २, आत्म अंगुल २, प्रमाण अंगुल ३, इनका अर्थ-तहां प्रथम ही उच्छेद अंगुल को बताः हैं। ताके निमित्त, उगशीस मैद गिणती कहिये। अवसनासन, सनासन, तटरेणु, प्रसरेण, रथरेणु, उत्तम भोग-भूमि के बाल का अग्रभाग, मध्य भोग-भूमि के बाल का अग्रभाग, जघन्य भोग-भूमि के बाल का अग्रभाग, कम-भूमि के बाल का अग्नभाग, लोख. सरसौं, जव नाम अन्न, अंगुल, ये तेरह स्थान हैं। सो अवसनासन स्कन्ध ते लगाय, अंगुल पर्यंत तेरह स्थान, आठ-आठ गुणा अधिक जानना। भावार्थ-जैसेअवसनासन स्कन्ध है सो अनन्त पुद्गल परमागून का स्कन्ध होय है। आठ अवसनासन का, एक सनासन स्कन्ध होय है। आठ सनासन मिलाथे, तब एक तटरेण होय है। आठ तटरेए मिलाये, तब एक ग्रसरेण होय हैं। ऐसे आठ-आठ गुणा अंगुल पर्यंत जानना। इस आठ जव प्रमाण उच्छेद अंगुल तैं पांच सौ गुणा प्रमाण-अंगुल है २४ चौबीस अंगुल का एक हाथ होय है १५ च्यारि हाथ का एक धनुष होय है २६ दो हजार धनुष का एक कोस होय है १७ च्यारि कोस का शक योजन होय है १८ असंख्यात योजन का एक राजू होय है १६ उगणीस भेदन में से तेरहमा भेद, आठ जव प्रमाण उच्छेद अंगुल है जिस काल में जैसा शरीर होय तैसा ही अंगुल, सो आत्म अंगुल जानना । अवसर्पिणी का प्रथम चक्रवर्ती, पांच सौ धनुष के शरीरवाला. ताका अंगुल सो ये प्रमागुल है। सो ये उच्छेद अंगुल से पांच सौ गुणा मोटा, प्रमाण-अंगुल जानना । इति। आगे अक्षर के तीन भैद हैं, सो | कहिये हैं। प्रथम नाम---निवृत्ति अन्तर, लब्धि अक्षर, स्थापना अक्षर, अब इनका अर्थ-तहाँ ओंठ ताल्वादि ४९ ३८५
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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