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________________ ३७७ तो गुरुयै कहै तौ सही; परन्तु मान-बड़ाई के अर्थ दोष छिपाय के कह। सो अपना नाम तो नहीं लेंथ। गुरु कहैं । भो गुरो ऐसा दोष काहू मुनि पै लागा होय तौताका कहा दण्ड ? सो कहो। ऐसे मालोचना सहित | पूछना। अरु निन्दा के भय से अपना नाम प्रगट नहीं करना याका नाम छिनि दोष है। ६ । और कोई मुनि कौं दोष लागा होय सो गुरु पैशकान्त तो नहीं कहैं। अरु जब आचार्य बहुत मुनि श्रावकन सहित तिष्ठे होंय तब मान का लोभी अपनी प्रशंसा करावने का अभिलाषी गुरु को कहै तथा अनेक स्वाध्याय का शब्द होय रह्या होय तथा आचार्य उपदेश करते होंय तथा और शिष्यन का प्रश्न होय रह्या होय इत्यादिक समय देखि भरो सभा में प्रश्न-उत्तर के शोर मैं अपना दोष गुरु कहै आलोचना करें। सो गुरु ने कछु सुन्या कडू नाहीं। ऐसा अवसर देखि कहना सो याका नाम शब्दाकुल दोष है । ७. और कोई मुनि को दोष लाग्या होय सो गुरुप जाय अपना दोष कहै। मालोचना कर राब गुरुघाके पापनाशने कुंप्रायश्चित्त देंथ। सो गुरु का दिया प्रायश्चित्त सुनि विचारी जो गुरु ने प्रायश्चित्त भारी बताया। तब ऐसी जानि और हो आचार्य पे जाय आलोचना सहित अपना दोष कहै। तब उनने भी दण्ड दिया ताकौं भी भारी दण्ड जानि और आचार्य के संघ में जाय आलोचना करि अपना दोष कहै । ऐसे ही जब ताई कोई आचार्य अल्प दण्ड नहीं बता तब ले अनेक आचार्यन पैजाय आलोचना करि अयना दोष कहै याका नाम बहु दोष है।६। कोई मुनि को दोष लागै सो पाप के भयतें अपना दोष प्रकाशै तौ सही। परन्तु मान-बड़ाई लजा के योग तें प्राचार्य कं नाहों कहैं। मेरा अपयश-निन्दा होयगी ताके भय से गुरु नहीं कहैं । अरु कोई आप तैं छोटे पदस्थधारी तथा आपके समानि होय तिस मुनि को कहैं। ताके पास अपना दोष आलोचना सहित प्रगट करै। सोयाका नाम अविक्त दोष है।६। और कोई मुनि को दोष लगा होय सो मान-बड़ाई अपयश-निन्दा के भय ते गुरु नाहीं कहैं और जब कोई आप-जसा दोष और मुनि कौं लागें, सो आचार्य कों वाकौं प्रायश्चित्त देते देखि, आचार्य को आप कहै। भो नाथ! इन मुनीश्वर-सा दोष मोकों भी लागा है। सो जैसा दण्ड या मुनि कौं दिया, तैसा ही मोकौं देव। ऐसी आलोचना सहित कहना, सो याका नाम तत्सैवत दोष है । २०। ऐसे आलोचना के दश दोष हैं । सो जो अन्तरंग के धर्मात्मा हैं तिनको अपने धर्म कौं सुधार राखना उत्कृष्ट है। इति आलोचना के दश दोष! अब बाचार्य कोई शिष्य के कल्याण होने कं
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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