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शब्दार्थ उभय पूर्ण । ३ । काल धेशोय कहिये, यथा काल अध्ययन करना । ४ । उयमाण कहिये, उपध्यान समधित । ५ । विराय समधय कहिये, विनय समर्षित । ६ । वहुमाग कहिये, बहु मान समधित अङ्ग । ७। | गुवादि कहिये, गुरुवादि निह्नव अङ्ग।८। वसु अङ्ग्य कहिये, ए ज्ञान के आठ अङ्ग हैं। भावार्थ-जो बिना अर्थ विचार हो पाठ का पढ़ना। तही गाथा, काव्य, छन्द, श्लोक, पद, विनति, सामाधिकादि पाठ का पढ़ना । सो याका नाम व्यंजनोजित अङ्ग है। २ । और जो शास्त्र तो नाहीं, परन्तु अपने उर विर्षे, एकान्त बैठा, शास्त्रन का अर्थ विचार करै सो र मी ज्ञान का अङ्ग है। याका नाम अर्थ समग्रह अङ्ग है ।२१ और जहां शास्त्र, काव्य, गाथा, छन्द अर्थ सहित पई। पाठ भी पढ़े, अरु अर्थ का मी विचार करै। सो र भी ज्ञानी का अङ्ग है। याका नाम शब्दार्थो-भय पूरण अङ्ग है।३। और जहां जिस काल में जैसा शास्त्र चाहिए, तैसा ही काव्य बखान करें। जैसे—प्रभात कालकौ कौन शास्त्र वांचिरा ? मध्याह में कौन शास्त्र वांचिए । शाम को कौन का अभ्यास कीजिए ? रात्रि की कौन का अभ्यास कीजिए? तथा बाल्य अवस्था में कौन शास्त्र का अभ्यास कीजिए? तरुणावस्था में कौन शास्त्र का अभ्यास करें। वृद्धावस्था में कौन शास्त्र का अभ्यास करं? इन आदि काल में जैसा शास्त्र चाहिय, तैसा ही विचार के काल-योग्य शास्त्र का अभ्यास करें।तेसा ही उपदेश देय । सो ए भी ज्ञान का अङ्ग है। याका नाम कालाध्ययन ध्रुव प्रभाव नाम अङ्ग है।४। और शास्त्राभ्यास निरप्रमाद होने के निमित उपवास-राकाशन करना, रस तजना, अल्प भोजन करना । ऐसा विचारना जो मेरे शास्त्राभ्यास में प्रमाद नहीं होय, ताके निमित्त तप करना। सोए भी ज्ञान का अङ्ग है। याका नाम उपध्यान समथित अङ्ग है। ५। और जहां शास्त्र का विनय करना । वाचना, सो विशेष उत्तम विनय से वाचना । सुनना सो भी राकचित्त करि विनय तें सुनना । उपदेश देना, सो पर-जीवन के कल्याणहेतु विनय तें देना । शास्त्र धरना-उठावना, सो भी विनय तैं। इत्यादिक शास्त्र का तिनय करना, सो ए भी ज्ञान का अङ्ग है। याका नाम विनय समधित अङ्ग है।६। और जाके पास प्रापने ज्ञानाभ्यास किया होय, जाते आपको ज्ञान की प्राप्ति भई होय, ताकी बहुत सेवा-चाकरी करना । ताको बारम्बार प्रशंसा करना, बारम्बार ताका उपकार स्मरण करना। ताका उपकार जन्मान्तर नहीं भूलना। सदैव धर्म-पिता
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