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मूके, लूले, टूटे, कूबरे, बावने का फल कहै । जाके तन का रस खट्टा तथा मिष्ट व कडुवा होय इत्यादिक जैसा तन का रस होय, सी फल कहै तथा तन का रुद्र, श्याम व लाल वर्ण होय, ताका फल कहै इत्यादिक शरीर के लक्षण देखि शुभ-अशुभ का फल सुख-दुःख है । सो अङ्ग-निमित्त ज्ञान है । २ । और भूमि विषै जहाँ-जहाँ जो वस्तु होय, सो जानें। जो इस जगह रतन खानि है। यहां कश्चन-खानि है। यहां विभूति है 1 यहां खोदो, अस्त्र समूह है, ताकौं जानें तथा इहाँ जल है । इहाँ पाखान है। इहाँ धन है । इत्यादिक भूमि में जहां-जहां शुभ-अशुभ चिह्न होय, तिनको जानें, सो भूमि निमित्त ज्ञानी कहिये । २। और आकाश के विषै बादर पटल, घन, गाज, बिजली चमकना, चन्द्रमा, सूरज, नक्षत्रादिक इत्यादिक तैं आकाश का शुभाशुभ चिह्न देखि, सुख-दुःख बतावै । सो अन्तरिक्ष-निमित्त ज्ञानी है । ३ । और जहां मनुष्य का शब्द सुनि शुभअशुभ हैं। तहाँ चाडाल, कृषक, वैश्य, ब्राह्मण, क्षत्रिय इत्यादिक मनुष्यन के शब्द सुनि, सुख-दुःख क तथापन के शब्द तो और, का, सार, वन, स्यार, मार्जार, व्याघ्री इत्यादिक पशून के शब्द सुनि, शुभ-अशुभ फल बतावें। सो सुर-निमित्त ज्ञानी है । ४ । और व्यंजन जो शरीर में तिल मसा देखि. सुख-दुःख कहैं। मुख पैं तिल, कर में तथा उर में मसा पीठ में नासिका, कान, गाल, अंगुरी इत्यादि हाथ-पांव अङ्ग में तिल-मसा देखि, शुभ-अशुभ कहैं। सो व्यंजन-निमित्त ज्ञानी है। ५ । और लक्षण जो शुभ चिह्न श्रीवृष, स्वस्तिक, भृङ्गार, कलश, वज्र, मछली इत्यादि शुभ तथा कोई अशुभ चिह्न इत्यादिक शुभअशुभ चिह्न शरीर में देखि, सुख-दुःख कहैं । सो लक्षण निमित्त ज्ञानी है । ६ । और छिन निमित्त ज्ञान सो कोई वस्त्रादि वस्तु कूं मूसादि जीवन कर काटी देखि, ताकरि शुभाशुभ फल कहै । सो छिन्न निमित्त हानी कहिये ॥७॥ और स्वप्न -- जो शुभाशुभ स्वप्रकौं जानि, ताका सुख-दुःख कहै । सो स्वप्न निमित्त ज्ञानी है ऐसे निमित्त ज्ञान आठ प्रकार कह्या । इहां सामान्य कया। विशेष अन्य ग्रन्थनतें जानना । आगे ज्ञान के आठ अङ्ग बताईये है
गाथा - विजन अर्थ समग्गह, सव्दार्थोभय कालवेणोम । उपभाण विणय, समय वहुमाण गुवादि वसु अंगय ॥ १२० ॥ अर्ध-विजन कहिये, व्यंजनोजित । २ । अर्थ समग्गह कहिये, अर्थ समग्रह । २ । सब्दार्थोभय कहिये,
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