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________________ ३४च मद के अमल मैं बेसुध भया । ताकों भले-बुरे का भेद कछु नाहीं। जाका ज्ञान सर्व भ्रममयो होय गया है। जाके अपनी परिणति अपने वश नाहीं। पराधीन अज्ञान चेष्टा का धारणहारा ऐसा मदोन्मत्त स्वप्न समानि बैसुध ताका || विश्वास नाही करिये और जे जीव परार किरा उपकार कौं भले सो कृतमी कहिए। काह ने मुख के भोजन दिया, नंगे कू वस्त्र दिया। रोग विषै मरत कौं अनेक यतन-जओषधि करि बचाया। तुच्छ पदस्थ ते बड़े पदस्थ का धारी किया, आदर रहित कू आदर सहित किया। निर्धन के धनवान किया। इत्यादिक उपकार जा किये होय तो भी तिन सबकं मलि जो दुर्बद्ध उल्टा द्वेष करें। अरु ऐसा कहै, तुमने कहा किया? हमारे भाग्य तें भया तथा हमारी बुद्धि के योग हम सुखी भरा व हमने पाया है। ऐसे कहनहास पराए किए उपकारन का उगलनहारा कहिए तजनहारा-मुलनहारा ऐसे कृतनी-पापाचारी का विश्वास नहीं करिये । क्योंकि जानें अनेक उपकार किरा तितका ही नहीं मया। तो ऐसा कुबुद्धि जीव और के अल्प उपकार को कहा मानेगा? ऐसा जानि याते डरि कर इस कृतघ्री का विश्वास नहीं करिए और एक स्वामी द्रोही, सो जिस स्वामी के प्रसाद अनेक सुख पार धन पाया छोटे से बड़े होय गए समय पाय उसही स्वामी का द्वेषी होय बुरा चाहे ताकं दुखदाई होय। ऐसे स्वामी द्रोही अपजस की मूर्ति अमृत समानि महालोभी ताका विश्वास नहीं करना भला है और जो अपने चित्त की वार्ता औरन को नहीं जनावै महामढ़ हृदय का धारी। मन में और वचन में और काय में और ऐसी कुटिल परिणति का धारी। तीव्र माथा कषाय के उदय का भोगनहारा, दगाबाज ताका विश्वास नहीं करना । र स्वामी द्रोही है! काहू का मित्र नहीं है। तातें इस स्वामी द्रोही का विश्वास नहीं करना और एक दुष्ट है, सो पराया सुखकू देखि आप दुःखी होय । पर-जीवनकू दुःखी देख आप सुखी होनेहारा, रौद्र परिणामी दुष्ट है। सो ऐसे दुष्ट का विश्वास नहीं करना । यात नली सोंगो नदी विषी दन्ती नगन शस्त्र धारी मदोन्मत्त कृतभी स्वामी द्रोही दुष्ट स्वभावी इन दश जाति के जीवन का विश्वास न करना सुखकारी है। इति श्रीसुदृष्टितरंगिणी नाम ग्रन्थ के मध्य में अनेक जुगति उपदेश वर्णन करनेवाला पचीसवाँ पर्व सम्पूर्ण भया ॥ २५ ॥ आगे मुस्त्र में मीठा, पीठ ते द्वेष करनहारा ऐसा मित्र, तजव योग्य है। सो दृष्टान्त सहित बतावे हैंगापा-पूल्य काजय हन्ता, पतखो पीय क्यण सिरणावो। सय सठ मागापिंडऊ, जय विसकुम्भोय वदन पय जेहो ॥ १९॥
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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