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________________ - --. . . - - दया रहित जीवन करि भरचा ऐसा कुक्षेत्र तहाँ यति का धर्म नहीं सधै । तातें ऐसे धर्मो जीवन रहित क्षेत्र में नहीं रहैं और जहां जिन-धर्म की प्रवृत्ति नहीं होय। जहां जिन चैत्यालय में जैन शास्वाभ्यास नहीं होय । तो ऐसे | कुक्षेत्र में मुनीस्ता नहीं रहैं । इत्यादिक कहे जले माकुलता के कारण खोटे स्थान, तहां जगत् पीर-हर नहीं रहें। कदाचित् रहैं तो संयम ते नष्ट होय। ऐसा जानना। आगे इन जीवन का विश्वास नहीं करिये, सो बताईये हैगाथा-णख संगा पसु गदियो, विसदंती सस्त्रणग तीय मदपायो। कितषण स्वामी दोहो, गम खस चित्तोय णाहि विसयासो ॥१८॥ अर्थ-राख संगा पसु कहिये, नख सींग के पशु । रादियो कहिये, नदी। विस कहिये, जहर। तथा दन्ती कहिये, दन्तवाले तिर्थञ्च। सस्त्रग कहिये, जाके हाथ में नग्न शस्त्र होय। तीय कहिथे, घर की स्त्री! मदपायो कहिये, दारु का मतवाला। कितघरा कहिये, कृतधी। स्वामी दोहो कहिये, स्वामी द्रोही। गम खल चित्तोय पाहि विसयासो कहिये, गढ़ मन का धारी दुष्ट परिणामो इन सबका विश्वास नाही करिये। भावार्थ-जे जीव नखते पर-जीवन का घात करनहारे ऐसे रीछ, सिंह, श्वान, मार्जार इत्यादिक दुष्ट तिर्य, ऐसे नखी जीवन का । विश्वास करना योग्य नाहीं और जे जीव सींगन तें पर-जीवनकू नारै रोसे भैंसा वृषम मोढ़ा, मृगादिक, ये तीक्ष्ण | सींग के धारी तिर्यों का विश्वास करना योग्य नाहीं और आप बहुत ही बलवान् जल का तैरनेहारा होय तौ भी सावन-भादवा को वर्षान करि चझ्या जो बे-मरजाद जल ऐसी भयानक नदी बहती होय, ताका विश्वास करना योग्य नाहों और महाहलाहल जाके खाये मरणा होय देखे ही प्राण जाय ऐसे विष का, कौतुक मात्र भी विश्वास करि खावना योग्य नाही तथा विष के धरनहारे कर सर्प-विच्छु आदिक विषवाले जीव तिन विषीन का विश्वास नहीं करिये और जे जीव दाँतन तैं पर-जीवन का घात करें कार्ट-मारेरोसे मगर चीता, ल्याली, स्यार और थे सिंह, श्वान दाँत-दाढ़ से भी मारे। तात सिंह, श्वान, सूस, गेंडा, हाथी इत्यादि जे दन्ती हैं। सो इन दन्तो तिर्यञ्चन का विश्वास करना योग्य नाहीं और जाके हस्त में नगन शस्त्र होय। ताका विश्वास नहीं करिये और स्त्री का ज्ञान महाशिथिल होय है। ताका चित्त महाचञ्चल होय । ताके उर विष कोई बात ठहरे नाही || गि विषयन की अभिलाखनी कार्य-अकार्य में नाहीं समझे। इत्यादिक अज्ञान चेष्टा की धरनहारी जो स्त्री पर्याय, । महालोभ की धरनहारो, रोसी स्त्री अपने घर की भी होय तो भी ताका विश्वास नाहीं कीजिये। अरु मदिरा-पाथी
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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