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________________ पर-स्त्री रम्या, पाप स्थानन में तीर्थ जा किया। हालाक्षिक परकार बशुम कर्म का बन्ध किया, सो तो तन पाया जैसा नहीं पाया । शरीर वृधा गया। जो शरीर पाय निहिंसक, आरम्भ रहित, दया|| भाव सहित, अन्तरगतप षट, बाह्य तय षट, ऐसे बारह तप कू करै, सो तन-फल है तथा जहां तें कर्म नाश कर जतीश्वर मोक्ष गये, सो स्थान शुद्ध तीर्थ है । सो जा शरीर ते तिस स्थान की वन्दना-पूजा करनी, सो शरीर सफल है । जिस शरीर से विकराल भेष धरि, पाप-पाखण्ड धरि, औस्तकं भय उपजाया। सो शरीर वृथा है और जा शरीरत कायोत्सर्ग-मुद्रा तथा पद्मासन-मुद्रा धरि, समता भाव धरि और जीवन कू विश्वास उपजाय सुखी किये। धर्म-ध्यान, शक्क-ध्यान रूप भाव सहित ध्यान किया, सो काय सफल है और पञ्च महाव्रत, पञ्च समिति, तीन गुप्ति-ये तेरह प्रकार चारित्र तथा बारह व्रत जा शरीर ते बन्या होय, सो तन पाया सफल है। जा धन करि पायारम्भ क्रिया करि, पर-भव कं दुःख उपजाया होय, सो धन वृथा है तथा जा धन से अन्य जीवन के मोल लेय मारे होय, जा धन ते पर-जीव बन्दी में किये होंय, पर-स्त्रो सेवन किया होय तथा वेश्या-गमन में दिया होय, नाच कराय, मान कराय इत्यादिक विकार भावन में धन दिया होय सो धन वृथा है तथा द्युत रमने में धन दिया तथा चूत रमने के कारण चौपड़ि, गंजफा, शतरों इन आदि द्युत कार्य के उपकरन तिनकौं बहुत मोल देय लेना बहुत धन देय चाँदी-स्वादि के बनवावना महाअनुरागी सहित धन लगाय चूत की शोभा करनो, सो धन वृथा है। जा धन से मुनि वीतरागकुं दान दिया होय, जिन भगवान की पूजा को होय, सो धन पाया सफल है और मुख पाय, वचन" अनेक जीवन के मान खण्डन किये होय । पर-जीवनकू कटु वचन कहि दुःख उपजाया होय तथा वृथा-बै प्रयोजन वचन अनर्थ दण्ड के उपजावनहारे ऐसे वचन इत्यादिक पाप-बन्ध करनहारा वचन बोलना, सो वचन पाया जैसा नाहीं पाया वृथा वचन है। जिन वचनों कुं अन्य जीव । सुनि साता पावै। जिन वचनों की प्रतीत करि और जीवनकौं स्थिरता होय सुख पावै। ते वचन दया सहित, हिंसा पाप रहित सत्य इत्यादिक जिन देव की आज्ञा-प्रमाण हित मित वचन का बोलना, सो वचन पाया सफल है। ऐसा जानिके विवेकी हैं तिनकौं बुद्धि पाय कैं तो जीवाजोवादिक तत्त्वन का विचार करि बुद्धि सफल करना योग्य है और तन पाय तप तीर्थ ध्यान करि तन सफल करना भला है। धन पाय दान-पूजादि करि पुण्य -INALLL
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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